आज ही एक मित्र का मेल आया. देखने के बाद लगा यह जानकारी कई और मित्रों के लिए भी उपयोगी हो सकता है. मेल जस का तस ब्लॉग पर धर रहा हूँ.
एनडीटीवी.कॉम में क्रिकेट और स्पोर्ट्स डेस्क के लिए कॉपी एडिटर और सीनियर कॉपी एडिटर की जरूरत है. इस संबंध में एनडीटीवी.कॉम ने आवेदन आमंत्रित किये है. सीनियर कॉपी एडिटर के लिए दो सालों का अनुभव होना चाहिए. वैसे फ्रेशर भी आवेदन कर सकते हैं. स्पोर्ट्स बैकग्राउंड वाले प्रत्याशियों को प्राथमिकता दी जाएगी. साथ ही ख़बरों की समझ और अंग्रेजी भाषा का अच्छी जानकारी होना भी आवश्यक है. आप अपना बायोडाटा kumudm@ndtv.com पर भेज सकते हैं.
रविवार, 27 दिसंबर 2009
सोमवार, 14 दिसंबर 2009
रविवार, 13 दिसंबर 2009
सर्वहारा की जीत
पूँजी और सर्वहारा की लड़ाई में
सर्वहारा के जीत की खबर,
आज के अखबारों की सुर्खियाँ हैं
चैनलों पर यह एक्सक्लुसिव न्यूज़ ब्रेकिंग है.
सर्वहारा नहीं जानता
यह पूँजी की खबर,
पूँजी की मीडिया में,
पैसे वालों ने उड़ाई है.
आम आदमी का देश,
आम आदमी की सरकार,
सच-सच बताओ, पिछले ६३ सालों से
देशभर में यह अफवाह किसने फैलाई है
शनिवार, 12 दिसंबर 2009
विकास पत्रकारिता कर रही सोपानSTEP का नाम सुना क्या????
ग्रामीण विकास की पत्रिका सोपानSTEP पिछले ४ सालों से नियमित दिल्ली से निकल रही है...कई साथियों से जब बात होती है, उन्हें इस पत्रिका के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं होती लेकिन जब वे इसके कलेवर और तेवर को देखते है तो पसंद करते हैं. इस पत्रिका की सबसे ख़ास बात मुझे हमेशा यह लगती है कि इसमे कभी डेस्क से रिपोर्ट नहीं ली जाती. जो आम तौर पर मीडिया संस्थानों में आज हो रहा है. जिसे आप गूगल जर्नलिज्म भी कह सकते हैं.. खैर पत्रिका हाजिर, आप अपनी राय से अवगत करना ना भूलें..
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009
मीडिया स्कैन का प्रभाष जोशी जी को समर्पित अंक
मीडिया स्कैन का यह अंक प्रभाष जोशी जी पर केन्द्रित है..
आपलोगों की प्रतिक्रया से हमारा उत्साह बढेगा.
आप अपनी रचनाएं और प्रतिक्रिया
07mediascan@gmail.com
पर भेज सकते हैं.
आप चाहें तो बात भी कर सकते हैं-
०९८९९५८८०३३
(यदि आप ब्लॉग पर 'मीडिया स्कैन' का अंक पढ़ नहीं पा रहे तो अपना ई-मेल पता यहाँ छोड़े, आपको मेल पर इसका पी डी ऍफ़ मिल जाएगा.
धन्यवाद
अपनी प्रतिक्रिया से जरूर अवगत काराएं ..)
मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
सोमवार, 7 दिसंबर 2009
बाल ठाकरे - जवानी का मजा फिल्म का विज्ञापन
पिछले दिनों महाराष्ट्र में बाल ठाकरे के संपादन में निकलने वाले मराठी अखबार ‘सामना’, पुणे संस्करण देखने का मौका मिला। बाल ठाकरे को तो आपलोग जानते होंगे। शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे। जिनके सैनिक महाराष्ट्र में भारतीय संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदार हैं। ये सैनिक हर साल 14 फरवरी (वेलेंटाइन डे) के आस-पास अतिरिक्त सक्रिय हो जाते हैं। चूंकि उस दौरान भारतीय संस्कृति को पतन से बचाने की बड़ी जिम्मेवारी इनके सिर होती है। इनके अखबार की पंचलाइन है, ‘ज्वलंत हिन्दुत्वाचा पुरस्कार करणारे एकमेव मराठी दैनिक’, और अगले ही पृष्ठ पर मिलता है, फिल्म ‘सात कच्ची कलियां’ (23 नवंबर 09, पृष्ठ 02) का विज्ञापन। इतना ही नहीं ‘कामग्रंथ’, ‘हॉट मलाईका’, ‘मैं हूं मल्लिका’, ‘मिस भारती इन गरम बाजार’ (26 नवंबर 2009, पृष्ठ-02), बदनाम रिश्ते (26 नवंबर 09, पृष्ठ 06), ‘जवानी का मजा’, ‘शादी के पहले तबाही’ (27 नवंबर, पृष्ठ 06) जैसी दर्जनों फिल्मों का विज्ञापन आपको इस अखबार में मिल जाएगा। जिस ‘कुरबान’ को लेकर बाल ठाकरे की तरह सोचने वाले संगठन डंडा लेकर महाराष्ट्र में खड़े हुए थे, उस फिल्म के विज्ञापन भी इस अखबार में लगातार एक सप्ताह से अधिक समय तक छपे हैं। खुद को हिंदू हृदय सम्राट कहलाना (यह दूसरी बात है कि वे हिंदी क्षेत्र में रहने वालों को हिंदुओं में नहीं गिनते) पसंद करने वाले बाल ठाकरे ऐसी फिल्मों का विज्ञापन करके कौन से हिंदू समाज का निर्माण करना चाहते हैं? यह व्यक्तित्व का दोहरापन नहीं तो और क्या है? एक तरफ आप ‘वेलेन्टाइन डे’ का संस्कृति के नाम पर विरोध करते हैं, आप नाइट क्लब संस्कृति के खिलाफ लिखते-दिखते रहे हैं, दूसरी तरफ आप ‘मिस भारती इन गरम बाजार’ जैसी फिल्मों का विज्ञापन करके न जाने किस संस्कृति का निर्माण करना चाहते हैं?
गुरुवार, 3 दिसंबर 2009
जेएनयू के क्षद्म प्रगतिशील
यह किस्सा कई दिनों से लिखने की सोच रहा था, बात जेएनयू के विपिन भाई की है. जिनसे पिछले दिनों बात हुई. इस बात चित में उस विश्वविद्यालय की वह पूरी छवि मटियामेट हो गई, जो कई वर्षों से मेरे जेहन में थी. आज भी नीलाम्बुज जब कहता है कि जे एन यूं एक रोग की तरह है, एक बार लग जाए तो ताउम्र नहीं छूटती. उसके कमिटमेंट को देखकर उसकी बात का वजन बढ़ जाता है, तभी तो सुनील भाई जैसे लोग जेएनयू छोड़ने के २५ साल बाद भी यदि २ घंटे के लिए भी दिल्ली आएं तो जेएनयू जाना नहीं भूलते. खैर, उस रोग के साथ एक दूसरे रोग के सम्बन्ध में विपिन भाई ने भी बात-चित की, छद्म प्रगतिशील समूहों के सम्बन्ध में. बातें तो कई सारी हैं लेकिन उन बातों पर विस्तार से चर्चा फिर कभी. आज सिर्फ उन तथाकथित प्रगतिशीलों के क्षद्म धर्मनिरपेक्षता की चर्चा. बकौल विपिन भाई -यह प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष वहीं हैं जिनके लिए दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजन में शामिल होना तो साम्रदायिकता को बढ़ाने में मदद देने वाले तत्व हैं. ये लोग कभी पूजा पंडाल की तरफ रूख भी करेंगे तो छुपाते-बचाते, कहीं कोई देख ना ले. लेकिन उन्हें साम्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए इफ्तार पार्टी में जाना जरूरी लगता है. कई इफ्तार पार्टियों में जिन्हें बुलाया गया है-उनके साथ वे लोग भी शामिल होते हैं, जिन्हें नहीं बुलाया गया. आप इन झूठे धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशीलों के सम्बन्ध में क्या राय रखते हैं? दुर्भाग्यवश ऐसे लोगों की तादाद जेएनयू में बढ़ती जा रही है.
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