इन दिनों एक लम्बी कहानी पर काम कर रहा हूँ, एक्स-वाई की कहानी- यह कहानी स्त्री-पुरूष के अंतर्व्यक्तिक संबंधों पर आधारित है. इसकी एक मुख्य किरदार की मौत को आज एक साल हो गए. कहानी को 'अनगढे' रूप में पढ़ने वाले मेरे कुछ मित्रों का मानना है, मेरी कहानी के किरदार एक्स की मौत कैसे हो सकती है क्योंकि एक्स कोई व्यक्ति नहीं बल्कि एक प्रवृति नाम है. और प्रवृति कभी मरा नहीं करती. मेरे दोस्त नहीं जानते की मैं क्या खाकर एक्स की मौत को लिखता. अपने मौत की घोषणा से लेकर तारीख तय करने तक का काम एक्स ने खुद तय किया है. मैं वेद व्यास की इस कथा में सिर्फ गणेश की भुमिका में हूँ. बहरहाल, हिन्दू रीती-निति में की गई पुनर्जन्म की व्यवस्था में मेरी गहरी आस्था है.
कहानी का एक अनगढ़ पृष्ठ आज एक्स की मौत को एक साल हो गए. पिछले साल ६ मार्च (शिवरात्रि के दिन) को उसकी मौत हुई थी. आज भी एक्स का दिया हुआ वह ५०० रूपये का नोट वाई ने संभाल कर रखा है. जिसकी वजह से अब वह एक्स का आजीवन 'उधारमंद' है. आपने कांचा इलैया का नाम सुना है. क्या आप 'सहादत' हसन मंटो (एक्स के लिए सआदत हमेशा सहादत ही रहे) को जानते हैं। खैर, वह किस्सा कभी और। एक्स पर पालागुमी साईनाथ का रंग चढ़ गया था. जब उसने प्रवीर से विदा लेकर शिवानी के 'कृष्णकली' का अंतिम अध्याय लिखा. वाई उस वक्त बेहद डर गया था. अर्थात किस्सा ख़त्म. लेकिन यह उसकी भूल थी. शो मस्ट गो ऑन. 'कृष्णकली' को कल्याणी का रूप लेने में अधिक वक्त नहीं लगा. वाई इसका चश्मदीद बना. 'तुम्हारी तरह १८ लोग और हैं मेरी जिंदगी में'. अब वाई ने तय कर लिया है- राजकमल चौधरी की 'मछली मरी हुई' को वह फिर से लिखेगा. इस बार कल्याणी डाक्टर रघुवंश की नहीं निर्मल पद्मावत की होगी. और किताब का नाम होगा- 'मछली की आँख'.