रवीशजी कुमार,
आपको यह पत्र लिखने का आयडिया आपके पत्रों को पढ़कर आया। यह सोचकर लिख रहा हूं कि पत्र लिखने वाले को पत्र की कद्र होगी। आपको अपने लिखे किसी खत का जवाब नहीं मिला, लेकिन आप इस खत का जवाब देंगे। ऐसा मैं सोच रहा हूं।
मुझे याद है कि रवीश की रिपोर्ट का किस तरह एक समय इंतजार रहता था। रवीश की रिपोर्ट के साथ बड़े हो रहे पत्रकारिता के छात्रों के समूह में एक विद्यार्थी मैं भी था। आपकी रिपोर्ट की वजह से उत्तर प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे और दलितों/ वंचितों के पक्ष में हमेशा खड़े रहे रिंकू राही से मिला और महाराष्ट्र में डिक्की वाले मिलिन्द काम्बले से। आपकी रिपोर्ट ने मुझे इनसे मिलने के लिए प्रेरित किया।
अचानक एक दिन एनडीटीवी का एक होर्डिंग नजर आया। यह होर्डिंग दिल्ली में चिड़िया घर और लोदी रोड़ के आस-पास कहीं लगा था, जिसका दावा यह था कि रवीश कुमार हिन्दी के नम्बर वन पत्रकार हैं। जबकि इस तरह का दावा यह होर्डिंग किस आधार पर कर रही थी, इसका उल्लेख पूरे होर्डिंग में कहीं नहीं था। जबकि मेरी जानकारी में रवीश की रिपोर्ट की टीआरपी भी अच्छी नहीं थी। जिसका रोना गाहे बगाहे आप भी रोते ही रहे हैं।
हमे नम्बर से इतना प्रेम क्यों हैं रवीशजी? मैने जब आपको गांव और दलितों की कहानी करते देखा था तो सोचा था कि आपको नम्बर से प्रेम नहीं है। आप नम्बर के खेल से बाहर हैं। इसलिए आप प्रिय रहे हैं लेकिन आप भी नम्बर से प्रेम करने लगे। मेरा अपना अनुभव इस नम्बर गेम को लेकर अच्छा नहीं है। रवीश अगर एक ब्रांड है, जिसे एनडीटीवी बेच रहा है अच्छे पैकेजिंग के साथ तो यह उसकी मार्केटिंग पॉलिसी है, लेकिन रवीश कुमार इस सबके बावजूद अपने अंदर के रवीश कुमार को बचाए रखें, यह तो रवीश की जरूरत थी। लेकिन महानता के इस खेल के शिकार होते हुए आप प्राइम टाइम एंकर की नई भूमिका में नजर आए। जहां आप एंकर कम अपने पैनल के ‘पापा’ की भूमिका में अधिक थे।
रवीशजी जबसे आपको मैने टीवी चैनल पर देखा है, आप सिर्फ सवाल पूछते हुए नजर आए हैं। कभी यह नहीं सोचा जो आपको देख रहे हैं, उनके अंदर भी बहुत से सवाल हैं। यही लोग जब आपसे सवाल पूछते हैं, आप झट से उन्हें गुंडा कह देते हैं। जब आप कहते हैं कि आपको मां बहन के नाम पर अपशब्द लिखा जा रहा है और यह हिन्दूवादी ताकतें या नरेन्द्र मोदी के पेड एजेन्ट कर रहे हैं तो एक पत्रकार होने के नाते आपको इस बात का प्रमाण भी देना चाहिए था। ना कि अन्ना हजारे के अभियान की तरह अभियान पर सवाल उठाने वाले हर एक शख्स को भ्रष्टाचारियों के पाले में डाल देना चाहिए। आप फेसबुक पर रहें या ना रहें लेकिन बुश की तरह यह घोषणा तो करते हुए विदा ना हों कि जो हमारे खिलाफ है वह आतंकवाद के साथ है।
इंदिरा गांधी के समय भारत के लोग कहते थे कि इंदिरा नहीं रहेंगी तो यह देश कैसे चलेगा? आप भी कहीं इसी तरह के किसी भ्रम के साथ फेसबुक और ट्यूटर पर मौजूद तो नहीं थे?
एक साहित्यकार ने यह किस्सा मुझे सुनाया था कि जब उसकी जान खतरे में थी, उसने आपको फोन किया था। यह वह समय था, जब दिल्ली निर्भया मामले की वजह महिला सुरक्षा के अलग-अलग सवालों से जुझ रही थी, ऐसे समय में एक पत्रकार के नाते और इंसान के नाते जब आपको उसकी मदद करनी चाहिए थी, आपने कहा कि आप इस तरह की खबरों का लोड नहीं लेते। रवीशजी कुमार यही बात फोन पर एक पीड़िता को विजयजी गोयल, विजयजी जॉली या विजयकुमरजी मल्होत्रा ने कही होती तो आप उनसे किस किस्म के सवाल पूछते? एक बार उन्हीं संभावित सवालों के जवाब आप देना पसंद करेंगे? या -जवाब देने की सारी जिम्मेवारी राजनेताओं की है और पत्रकार सिर्फ सवाल पूछने के लिए पैदा होते हैं- इस तरह की राय में आप यकिन रखते हैं।
रवीश बंगाल में एक चर्च में एक बुजूर्ग महिला के साथ बलात्कार की खबर आई थी। आपके मित्र और जनसत्ता के पूर्व संपादक ओमजी थानवी ने खुर्शीद अनवर कथित बलात्कार मामले में कहा था कि जब तक बलात्कारी के नाम की पुष्टी ना हो, आप मामले में कथित लगाइए। जबकि रवीशजी कुमार बंगाल चर्च की उन बुजूर्ग महिला के मेडिकल रिपोर्ट को पढ़े बिना आपने मामले को बलात्कार का मामला बताया। दूसरी बात आपने उस मामले के लिए दोषी हिन्दूवादी संगठनों को बताया। बाद में बंगाल में हुई उस घटना में कुछ मुस्लिम युवक गिरफ्तार हुए और आपकी माफी आज तक नहीं आई।
प्राइम टाइम में दिखने वाला आपका अहंकार ही है जो आपकी आलोचना करने वाले हर एक व्यक्ति को आपकी नजर में ‘गुंडा’ बना देता है। इसी वजह से इन दिनों आपकी रिपोर्ट में वह धार भी नजर नहीं आती जो पुराने रिपोर्ट में हुआ करती थी। मुझपे यकिन ना कीजिए, अपनी ही रिपोर्ट की पुरानी फूटेज देखिए।
जब एक राजनीतिक दल में हुई किसी घटना के लिए पूरी पार्टी जिम्मेवार होती है, ठीक इसी प्रकार एनडीटीवी पर उठ रहे सवालों से आप यह कहकर नहीं बच सकते कि आप वहां नौकरी करते हैं। चाहे वह कोका कोला के साथ मिलकर चलाया जा रहा कार्यक्रम हो या फिर बरखा दत्त से जुड़े सवाल। या फिर वेदांता से चैनला की मित्रता या फिर आपके द्वारा खुद को इस तरह पेश किया जाना मानों पूरी पत्रकारिता को आपने ही बचा कर रखा हो। इन सवालों के जवाब सार्वजनिक मंच पर आकर देने से आप क्यों बच रहे हैं? मीडिया स्कैन के मंच पर मैं आपको न्योता देता हूं। आइए। यकिन दिलाता हूं, पूरी बातचीत में कोई आपके लिए अपशब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगा। वर्ना रोज रोज सवाल पूछते पूछते कहीं आपके साथ ऐसा ना हो कि आप जवाब देना ही भूल जाएं।
बहरहाल रवीशजी, हिन्दी की पत्रकारिता की आप चिन्ता ना कीजिए। आप नहंी होंगे, कोई और होगा। आपके ही चैनल में रवीश रंजन ने बुंदेलखंड से और हृदयेश जोशी ने असम से बेहतरीन रिपोर्ट की। आपने भी देखी ही होगी। उनके मुकाबले पिछले दिनों आई आपकी रिपोर्ट कमजोर थी। बिना होमवर्क किए एक मोहल्ले में एक व्यक्ति को साथ लेकर जाना। वहां से फूटेज इकट्ठा करके आधा घंटे का प्रोग्राम बना देना। पिछले दिनों अपने रिपोर्ट में यही आपने किया। शायद आपको लगता है कि आप सेलिब्रिटी एंकर हैं और आप जो भी पड़ोस देंगे देखने वाले उसे वाह वाह करके देख लेंगे। रवीशजी आप गलत सोचते हैं, देखने वाले आपको पहले इसलिए पसंद करते थे क्योंकि पहले आप अपनी रिपोर्ट पर होमवर्क करते थे।
अंत में फेसबुक और ट्वीटर से जाना किसी समस्या का समाधान नहीं है। इसलिए लौट आइए और सवाल पूछते हैं तो जवाब देने का भी हौसला रखिए। बाकि जो है सो हइए है...
आपके रवीश की रिपोर्ट का नियमित दर्शक
आशीष कुमार ‘अंशु’