गुरुवार, 19 जून 2014

सब हमारे चाहने वाले हैं, हमारा कोई नहीं

पीर सोना गाजी कभी एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया में बसते थे। बाद में उन्हीं के नाम से इस रेड लाइट एरिया का नाम सोनागाछी पड़ गया। इतिहासकार देबोजीत बंदोपाध्याय और रजत रे के अनुसार एक समय यह नृत्य और कला का केन्द्र हुआ करता था। अंग्रेजो के आने के बाद यह जगह शास्त्रीय संगीत के केन्द्र से यौनकर्मियों के अड्डा के तौर पर विकसित हुआ। समय के साथ बहुत कुछ बदला और निश्चित तौर पर यौनकर्म भी बदला। इसी का परिणाम है कि कोलकाता की यौनकर्मी आज सरकार पर इस बात के लिए दबाव बना रहीं हैं कि सरकार यौन कर्मियों को कानूनी अधिकार दे और दलाल-पुलिस के गिरोह से मुक्त करे। यदि सरकार ऐसा करने में सक्षम नही होती तो कोलकाता की यौनकर्मी इस बार लोकसभा चुनाव में नोटा का बटन दबाएंगी।
कोलकाता शहर में यौनकर्मियों के बीच लंबे समय संे काम कर रही भारती देव बताती हैं-
‘बीस सालों से हम विभिन्न राजनीतिक दलों का वादा सुन रहे हैं कि ‘हमारी सारी मांगे वे पूरी कर देंगे।’ राजनीतिक दल वाले ना सिर्फ वादा करके गए बल्कि हमारी मांग पत्रों पर उनका हस्ताक्षर भी मिल जाएगा लेकिन जब बात आती है, चुनाव से पहले इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल करो, सभी राजनीतिक दल शुचितावादी बन जाते हैं। कब तक हमें इस तरह ये राजनीतिक पार्टियां ऊल्लू बनाती रहेंगी?’
 यह खबर लिखे जाने तक सोनागछी की ग्यारह हजार यौनकर्मी महिला मतदाताओ ने तय किया है कि इस बार वे मतदान नहीं करेगी। यदि लोकतंत्र के सम्मान में उन्हें मतदान केन्द्र तक जाना पड़ा तो इनमें से कोई नहीं (नोटा) का बटन दबाएंगी।
भारती देव कहती हैं- ‘जब लोकतंत्र में यौनकर्मियों के लिए अपने रोजगार के साथ जीने का अधिकार नहीं है फिर अपनी कमाई का एक दिन कतार में लगकर व्यर्थ करने जैसा ही होगा, इनके लिए।’
कोलकाता (नॉर्थ), जहां इस बार लोकसभा चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है, इन ग्यारह हजार मतों की सही कीमत वे प्रत्याशी बता सकते हैं, जो इस क्षेत्र में खड़े हैं। लेकिन यौनकर्मियों के जीवन की यही विडम्बना है, उनका साथ हर कोई चाहता है लेकिन उनके साथ दिखना कोई नहीं चाहता।
यहां तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय, कांग्रेस से सोमेन मित्रा और सीपीएम की रूपा बागची में कड़ा मुकाबला है। ये सभी प्रत्याशी यौनकर्मियों से व्यक्तिगत बातचीत में उनके साथ होने के तमाम वादे करते हैं लेकिन यौनर्मियों की मांग उनके घोषणापत्र में शामिल क्यों नहीं है, का ठीक-ठीक जवाब वे नहीं दे पाते।
कोलकाता के रेड लाइट एरिया में रहने वाली महिलाओं का नाम 1990 तक मतदाता सूचि में शामिल नहीं था। इस नाम के लिए उन्हें लंबा संघर्ष करना पड़ा। पहचान पत्र ना होने की वजह से उनका राशन कार्ड नहीं बन सकता था। उनका बैंक में खाता नहीं खुल सकता था। उनके बच्चों का स्कूल में नामांकन नहीं हो सकता था।
सोनागाछी की सेक्स वर्कर्स ने कुछ समाज सेवियों की मदद से उषा कॉपरेटिव बनायां। उषा कॉपरेटिव बैक अपनीे तरह का अनोखा बैंक है, जिसे यौनकर्मियों द्वारा यौनकर्मियों के लिए चलाया जाता हैै। उषा सहकारी समिति ने चुनाव आयोग को निवेदन भेजा कि उषा सहकारी बैंक में चल रहे बचत खाते को पहचान पत्र माना जाए।
चुनाव आयोग ने इस निवेदन को स्वीकार किया और इस तरह उनके अपने उषा कॉपरेटिव ने उन्हें अपनी पहचान दी। डॉ. स्मरजीत जेना लंबे समय से यौनकर्मियों के अधिकार के लिए लड़ रहे है। डा जेना बताते हैं कि उषा कॉपरेटिव के लिए जब यौनकर्मियों का दल आवेदनपत्र लेकर पहली बार गया था तो परिचय में यौनकर्मी देखकर वहां मौजूद अधिकारी ने सुझाव दिया कि यौनकर्मी की जगह गृहिणी लिखना सही होगा।
आवेदन लेकर गई महिलाओं के समूह में से जब एक महिला ने अधिकारी को कहा कि अभी तो मैं यौनकर्मी ही हूं, यदि आप मुझसे शादी कर लें तो गृहिणी हो जाऊंगी। क्या आप मुझसे शादी करेगे?  इसका जवाब अधिकारी नहीं दे पाए। इस तरह यौनकर्मियों का पहला अपना कॉपरेटिव बैक बना।
2004 में सीपीएम के उम्मीदवार सुधांशु यौनकर्मियों द्वारा यौनकर्म को कानूनी अधिकार दिए जाने के संबंध में  निकाली गई यात्रा में शामिल हुए थे। 2009 में तृणमूल के सुदीप बंदोपाध्याय ने यौनकर्मियों द्वारा काूननी अधिकर दिए जाने संबंधी विज्ञप्ती और पुलिस-दलाल  की मिली भगत से मुक्ति से जुड़ी विज्ञप्ती पर हस्ताक्षर भी किया था। लेकिन नेताओं के हस्ताक्षर और वादे चुनाव तक के लिए होते हैं, इस बात को कोलकाता के यौनकर्मी इस बार समझ गई हैं।
आमतौर पर सोनागाछी की एक यौनकर्मी को कमरे के किराए का महीने में दो से ढाई हजार रुपए देना पड़ता है। उन्हें एक घंटे के लिए डेढ़ सौ रुपए मिलते हैं। जिसमें पैंतीस से चालिस फीसदी हिस्सा पुलिस, दलाल और स्थानीय गंुडों का होता है। यौनकर्मियों की मांग है कि पुलिस जब खुद यह धंधा चलवा रही है फिर इस धंधे को कनूनी अधिकार देने में क्या अर्चन है? अर्चन सिर्फ इतनी है कि दलालों और पुलिस की आमदनी पर रोक लग जाएगी। वैसे सोनागाछी में ऐसी यौनकर्मी भी हैं जो एक घंटे के लिए दस से पन्द्रह हजार रुपए भी लेती हैं। हाल में इंकम टैक्स के छापे में सोना गाछी से दो करोड़ रुपए नकद बरामद हुए। यही वजह है कि कोलकाता पुलिस की जुबान में इसे सोने की खदान कहते हैं।
खबर लिखे जाने तक कोलकाता की यौनकर्मियों ने तय कर लिया है कि इस बार वे ‘इनमें से कोई नहीं’ विकल्प के साथ मतदान केन्द्र तक जाएंगी क्योकि वे जान गईं हैं कि नेता यौनकर्म को कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं होने देंगे। दुर्बार की महासिता मुखर्जी कहती हैं- हालात यही रहे तो संभव है कि अगले चुनाव में यौनकर्मियों की तरफ से उनका अपना कोई उम्मीदवार मैदान में हो।


आशीष कुमार ‘अंशु’
09868419453

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम