
पिछले दिनों महाराष्ट्र में बाल ठाकरे के संपादन में निकलने वाले मराठी अखबार ‘सामना’, पुणे संस्करण देखने का मौका मिला। बाल ठाकरे को तो आपलोग जानते होंगे। शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे। जिनके सैनिक महाराष्ट्र में भारतीय संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदार हैं। ये सैनिक हर साल 14 फरवरी (वेलेंटाइन डे) के आस-पास अतिरिक्त सक्रिय हो जाते हैं। चूंकि उस दौरान भारतीय संस्कृति को पतन से बचाने की बड़ी जिम्मेवारी इनके सिर होती है। इनके अखबार की पंचलाइन है, ‘ज्वलंत हिन्दुत्वाचा पुरस्कार करणारे एकमेव मराठी दैनिक’, और अगले ही पृष्ठ पर मिलता है, फिल्म ‘सात कच्ची कलियां’ (23 नवंबर 09, पृष्ठ 02) का विज्ञापन। इतना ही नहीं ‘कामग्रंथ’, ‘हॉट मलाईका’, ‘मैं हूं मल्लिका’, ‘मिस भारती इन गरम बाजार’ (26 नवंबर 2009, पृष्ठ-02), बदनाम रिश्ते (26 नवंबर 09, पृष्ठ 06), ‘जवानी का मजा’, ‘शादी के पहले तबाही’ (27 नवंबर, पृष्ठ 06) जैसी दर्जनों फिल्मों का विज्ञापन आपको इस अखबार में मिल जाएगा। जिस ‘कुरबान’ को लेकर बाल ठाकरे की तरह सोचने वाले संगठन डंडा लेकर महाराष्ट्र में खड़े हुए थे, उस फिल्म के विज्ञापन भी इस अखबार में लगातार एक सप्ताह से अधिक समय तक छपे हैं। खुद को हिंदू हृदय सम्राट कहलाना (यह दूसरी बात है कि वे हिंदी क्षेत्र में रहने वालों को हिंदुओं में नहीं गिनते) पसंद करने वाले बाल ठाकरे ऐसी फिल्मों का विज्ञापन करके कौन से हिंदू समाज का निर्माण करना चाहते हैं? यह व्यक्तित्व का दोहरापन नहीं तो और क्या है? एक तरफ आप ‘वेलेन्टाइन डे’ का संस्कृति के नाम पर विरोध करते हैं, आप नाइट क्लब संस्कृति के खिलाफ लिखते-दिखते रहे हैं, दूसरी तरफ आप ‘मिस भारती इन गरम बाजार’ जैसी फिल्मों का विज्ञापन करके न जाने किस संस्कृति का निर्माण करना चाहते हैं?