सोमवार, 31 जनवरी 2011

हम जैतापुर परियोजना के खिलाफ हैं: प्रवीण परशुराम गवाणकर



जैतापुर में प्रस्तावित 9900 मेगावाट परमाणु ऊर्जा
संयंत्र के लिए कुल 938 हेक्टेयर जमीन ली जानी है,
जिसमें 669 हेक्टेयर जमीन हमारे गांव मडवन की
है। यह संयंत्र हमारे लिए षडयंत्र है। हमारे गांव के
लोग बिल्कुल इसके लिए तैयार नहीं हैं। सरकार हमसे इस
विषय पर बात करना चाहती है, लेकिन जब उसने फैसला कर
लिया है कि परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए मडवन की जमीन
ही ली जानी है तो कहिए बातचीत का क्या लाभ? वैसे
इस तरह के व्यवहार को तानाशाही कहा जा सकता है,
बातचीत तो कभी नहीं।
इस परियोजना का जब गांव के लोगों ने विरोध किया
तो गांव वालों को पुलिसिया ज्यादती का शिकार
होना पड़ा। लगभग दो सौ लोगों पर विभिन्न
धाराओं में मुकदमा चल रहा है। आधा दर्जन से
अधिक लोगों को तडीपार घोषित किया जा चुका
है। इरफान जो इस आंदोलन में हमारे साथ था,
पुलिस की गाड़ी के नीचे आने से उसकी मौत हुई।
अब इन सारी बातों का हम क्या अर्थ निकाले? ऐसे

बच्चों को पुलिस अपने साथ गांव से उठाकर ले गई
जो स्कूल से लौटे थे। बच्चों ने पुलिस को बस
का टिकट भी दिखलाया लेकिन कोई सुनवाई नहीं
हुई। हम गांव वालों का स्पष्ट मानना है कि सरकार
चाहे तो हमारी हत्या कर वह जमीन हमसे छीन ले लेकिन
जीते जी हम यह जमीन उन्हें नहीं सौंप सकते हैं।
मडवन परियोजना के विरोध में लगभग एक दर्जन
पंचायतें अब तक भंग हो चुकी हैं। हम सभी
लोगों ने मिलकर तय किया है, परियोजना की जमीन पर
चौकसी में लगे पुलिस वालों को गांव के लोग
किसी प्रकार का सहयोग नहीं करेंगे। मडवन हमारे लिए
क्यों जरुरी है, और हम इस परियोजना को अपने गांव
में क्यों नहीं चाहते, इसे लेकर हम लोगों ने
सिमित संसाधनों में एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म
भी बनवाई है। हमारा क्षेत्र पर्यावरण के लिहाज
अति संवेदनशील है। सरकार को चाहिए, इस परियोजना
को मालाबार के तट पर लेकर जाए। तमाम तरह की समितियों
की रिपोर्ट आप देख लीजिए। इस जमीन को किसी भी
प्रकार से परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए उपयुक्त जमीन
नही ंमानी जा रही है। रत्नागिरी जिले के अलावा
सिंधुदुर्ग और रायगढ़ में भी कई प्रदूषण
फैलाने वाली परियोजनाओं पर एक साथ काम हो रहा
है। हमें फिक्र है कि इन परियोजनाओं की वजह से
इन जिलों में रहने वाले लोगों का स्वास्थ,

समुन्द्री जीव जन्तु और जैव विविधता पर असर पड़ेगा।
लेकिन महाराष्ट्र की सरकार ने इस जमीन के मुद्दे को
अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है। यदि मडवन में यह
संयंत्र बन गया तो यह सिर्फ हमारे गांव के जनजीवन को
नहीं बल्कि पुरे कोंकण के जनजीवन को प्रभावित
करेगा।
वर्ष 2003 में ही हमने पूर्व केन्द्रिय मंत्री सुरेश
प्रभू से इस संकट को लेकर बातचीत की थी। उस
वक्त हमारे गांव में आकर वे बोलकर गए थे कि यह
सिर्फ अफवाह है। ऐसी कोई परियोजना शुरु नहीं
हो रही। उस दिन के बाद वे कभी हमारे गांव में
लौटकर नहीं आए। महाराष्ट्र में मराठी मानुष की
राजनीति करने वाले भी इस मामले में दो कदम पिछे
खड़े हो गए। जबकि इस मामले में शत प्रतिशत मराठी
मानुषों की ही जमीन जा रही है।
हमें कदम-कदम पर छला गया और धोखे ंमें रखा
गया है। तारापुर परियोजना के लिए बताया गया कि वहां सब
अच्छा चल रहा हैै। मैं खुद उस गांव में गया।
वहां की स्थिति बिल्कुल दयनीय है। वहां सिर दर्द,
घुटनों में दर्द और गर्भ पात की संख्या में
आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। गांव में कमजोर बच्चे
पैदा हो रहे हैं। परियोजना से पहले इस गांव में
मछली पकड़ने के लिए 48 लॉंच थे, अब सिर्फ दो
ही रह गए हैं। मैं स्वष्ट शब्दों में कह देना
चाहता हूं, हम गांव वाले जैतापुर परमाणु ऊर्जा
संयंत्र परियोजना बिल्कुल खिलाफ हैं।
( गवाणकर जनहित सेवा समिति, मडवन के संयोजक
हैं)

सोमवार, 10 जनवरी 2011

बिग बॉस का मुकाबला कहीं फिक्स तो नहीं था

श्वेता तिवारी के बिग बॉस सीजन चार जीतने के बाद एडमॉल के बिग बॉस - बिगर तमाशा का अंत हुआ। श्वेता के हिस्से एक करोड़ रुपए आए और बाकि बचे लोग जो बिग बॉस के घर का हिस्सा बने थे, उन्हें भी पहचान और पैसा मिला। एक प्रतिभागी ने कैमरे के सामने स्वीकार किया। पहले जो लोग मिलने को भी तैयार नहीं थे, बिग बॉस में आने के बाद पहचानने लगे हैं। भाव देते हैं।


इस रियालिटी शो को देखने के दौरान इसकी रियालिटी पर हो सकता है कि कोई सवाल ना उठाए लेकिन शो में शामिल घर वालों को घर से अंदर बाहर करने में दर्शकों का रॉल कहीं नजर नहीं आया। बिग बॉस के घर से किसे निकालना है, इसका रिमोट दर्शकों के हाथ में नहीं बल्कि कार्यक्रम के प्रबंधकों के हाथ में था। वरना श्वेता तिवारी के नाम की घोषणा के साथ बिग बॉस को इस बात का भी ऐलान करना चाहिए कि यदि श्वेता द ग्रेट खली के मुकाबले विजयी हुईं हैं तो उसकी जीत के लिए तय पैमाने क्या थे? यदि उन्हें दर्शकों ने अपने वोट से जीताया है तो दर्शकों को यह जानने का पूरा हक है कि उनकी चहेती श्वेता तिवारी कितने मतों से विजयी हुए हैं। दूसरी तरफ खली द ग्रेट के प्रशंसकों को भी यह जानने का पूरा हक है कि यदि उनके प्रिय खली नहीं जीते तो इसके पिछे उनसे कहां चूक हुई? लेकिन बिग बॉस ने इसकी परवाह नहीं की।
बिग बॉस के पास तो इस सवाल का जवाब भी नहीं होगा कि जब घर के अंदर बाहर की खबर नहीं जा रही थी तो डॉली बिन्द्रा ने कैसे जाना कि बाहर सारा का तलाक हो चुका है?



चूंकि बिन्द्रा एक एपिसोड में यह कहती हुई मिली कि सारा तो दूसरी शादी की तैयारी कर रही है।
इस संदेह से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने से पहले क्लोडिया, परवेश राणा, वगैरह वगैरह को पता हो कि उन्हें किन किन एपिसोड में बाहर होना है। डॉली बिन्द्रा जब कार्यक्रम से बाहर हो गईं उन्हें पता हो कि उन्हें फिर कार्यक्रम में वापस आना है।
बिग बॉस में डॉली बिन्द्रा की भूमिका को देखकर कोई भी समझ सकता है कि वह कार्यक्रम में एक तय एजेन्डे के साथ शामिल हुईं थीं। वह लगातार कार्यक्रम में अपने हंगामें का तड़काा लगा रही थी। कोई भी कह सकता था कि बिग बॉस की तरफ से उन्हें विश्वास पत्र मिला हुआ है कि अन्तिम चार तक कोई उनका बाल भी बांका नही ंकर सकता। और इस बात में भी शक की गुंजाइश कम ही थी कि बिग बॉस में वे टॉप फोर से आगे जाएंगी।



इस कार्यक्रम में द ग्रेट खली की जगह श्वेता तिवारी की जीत में सटोरियों की भूमिका का भी संदेंह होता है। कोई नहीं सोच सकता था कि इस मुकाबले में द ग्रेट खली की हार होगी। एक समाचार चैनल के अनुसार सट्टा बाजार में बड़ी रकम खली के नाम पर लग रही थी। ऐसे में करोड़ों रुपयों के खेल में श्वेता तिवारी के नाम एक करोड़ कर देना घाटे का सौदा तो नहीं लगता? इन्हीं बातों से संदेंह होता है कि श्वेता की जीत बिग बॉस फिक्सिंग का हिस्सा तो नहीं। बकौल श्वेता उसने भी नहीं सोचा था कि वह बिग बॉस सीजन चार में जीत हासिल करेगी। यदि श्वेता की जीत वाजीब थी तो बिग बॉस को श्वेता की जीत कैसे सुनिश्चित हुई, इस प्रक्रिया के खुलासे मंे पारदर्शिता बरतनी चाहिए।


टेलीविजन मनोरंजन का कारोबार करोड़ों का है, लेकिन जीन दर्शकों से यह बाजार बनता है, यूं लगता है मानों वे ही इस पूरे आयोजन में हासिए पर डाल दिए गए हैं।

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

पूणे के चित्रकार बापूसाहेब जानजे







पूणे के चित्रकार बापूसाहेब जानजे की तस्वीर को आप अपनी प्रतिक्रिया से नवाजिए...

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम