प्रति वर्ष जुलाई महिने के पहले पखवारे में उत्तर बिहार में आने वाली भयानक बाढ़ अतिथि नहीं है। यह कभी अचानक नहीं आती। दो-चार दिन का अंतर पड़ जाय तो बात अलग है। इसके आने की तिथियाँ बिल्कुल तय हैं। लेकिन जब बाढ़ आती है तो हम कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं कि यह अचानक आई विपत्ति है। इसके पहले जो तैयारियां होनी चाहिय वह बिल्कुल नहीं हो पाती हैं। इसलिय अब बाढ़ की मारक क्षमता पहले से अधिक बढ गई है। पहले शायद हमारा समाज बिना इतने बडे प्रशासन के, या बिना इतने बडे निकम्मे प्रशासन के अपना इन्तजाम बखूबी करना जानता था। इसलिय बाढ़ आने पर इतना अधीक परेशान नही दिखता था।
पर्यावरणविद अनुपम मिश्र ने जैसा आशीष कुमार 'अंशु' को कहा
मंगलवार, 12 जून 2007
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