रजत जी, रजत जी तुम्हारे घर में कोई मां, बहन नहीं है क्या?
औघट बाबा ने सीधे-सीधे मिलते हीं उनसे यही सवाल पूछा।
रजत ने उनकी बात सुनी तो खी खी या कर हंस पड़े।
औघट बाबा रुकने वाले कहाँ थे सो चालू रहे,
दिन में तुम्हारा चॅनल मनोहर कहानियाँ होता है, और रात को १२ बजते ही इसे तुम मस्तराम की किताब बना देते हो।
मुझे तो लगता अब महिलाओं को तुम्हारे जैसे चॅनल वाले जागरूक बनाकर हीं रहेंगे।
जिस गंदगी को तुम खत्म करने की बात करते हो, तुम्हे पता है, ख़त्म करने के नाम पर तुम पूरे दिन में कितनी गंदगी अपने दर्शकों के सामने पडोसते हो?
औघट बाबा की बात सुनने के बाद रजत हंसा।
'बाबा घर में माँ, बहन, बेटी, पत्नी सभी हैं। लेकिन इनमे से कोई मेरा चॅनल नहीं देखता। सभी अंगरेजी का चॅनल देखते हैं।
वैसे भी हमारा चॅनल आम आदमी के लिय है।
आम आदमी की बात सुन कर बाबा बड़े प्रसन्न हुय। आजकल सुना है वह रजत के चॅनल पर दिखते हैं और रविवार से लेकर शनिवार तक किय जाने वाले व्रतों के लाभ बताते हैं।
बुधवार, 2 अप्रैल 2008
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आशीष कुमार 'अंशु'

वंदे मातरम
2 टिप्पणियां:
theek baat....
sahmat hu aapase....
जनाब बात पत्ते की कही हे निशाना सही मारा हे लगे तभी बात बने, मेरा चेनल मेरी मां बहिन ओर बेटी नही देखती ? फ़िर...रजत जी,,,?
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