
देश में किसी भी पार्टी की सरकार हो, कोई भी पार्टी अपने शाशन में भूख सेहोने वाली मौतों को स्वीकार नहीं पाती। इस देश में कुपोषित बच्चों कीसंख्या दुनिया भर के कुपोषित लोगों की संख्या का एक तिहाई से भी अधिकहै। बुंदेलखंड के बांदा, महोबा, छत्तरपुर, चित्रकूट, जालौन, झांसी,ललितपुर, हमीरपुर में इस तरह के दर्जनों मामले सामने आय जहाँ स्थानीयप्रशाशन ने भूख या कर्ज की वजह से हुई मौत को कुछ और रंग दे दिया। उदाहरणके तौर पर बांदा जिले के एक गांव पड्वी के एक किसान की मौत को ले सकतेहैं। जिसने बैंक और स्थानीय साहूकारों द्वारा अपने पैसे वापसी के लियलगातार धमकाय जाने से तंग आकर आत्महत्या का रास्ता अपनाया। जबकि स्थानीयपुलिस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि बेटी के बदचलनी से तंग आकर उक्त किसानने आत्महत्या की। इस तरह के दर्जनों उदाहरण आपको बुंदेलखंड में मिलजायेंगे। जिन्होंने इस मुश्किल समय में - जब कई सालों से बुंदेलखंडसुखा का कहर झेल रहा है- अपनों को खोया है।

गत वर्ष कैंसर की वजह से इस आन्दोलन के मुखिया राजेंद्र सिंह की मौत होगई। लेकिन उनके साथियों ने इस आन्दोलन को कमजोर नहीं पड़ने दिया। ०९ मईको राजेंद्र की पहली पुण्यतिथी है, इस अवसर पर उनके कुछ साथियों नेचरखारी (महोबा) में तालाब की सफ़ाई का बीड़ा उठाया है। पुण्यतिथी के अवसरपर एक जनसभा की भी योजना है।बहरहाल बुंदेलखंड में बिना किसी गतिरोध के चूल्हा-बंदी जारी है।
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बात में दम है
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