मैंने नहीं सोचा था कि भोपाल में पानी की किल्लत भी हो सकती है। इस शहर
के लोग गर्व से कहा करते थे, ताल में भोपाल
ताल, बाकी सब
तलैया। आज भी शायद कहते हों। ख़ैर भोपाल में एक जगह है एम पी
नगर, वही है एक सिनेमा हाल - जिसका नाम है सरगम
सिनेमा। उसी सिनेमा हाल के पास ही बहने वाले एक नाले से
लगकर कुछ लोग रात को लगभग १२ बजे एक पाईप से पानी भरते मिले।

इतनी रात को ४-५ लोगों को यहाँ पानी भरते देख उत्सुकता वश उनके पास चला गया। इनमे से एक का नाम
था, रमेश
उई। भोपाल से १३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक आदिवासी क्षेत्र नयापूरा से ये जनाब यहाँ पानी लेने आए थे। उई कहते
हैं, हमारे यहाँ टैंकर में भरकर पानी आता है, लेकिन एक बाल्टी पानी लेने के लिय वहाँ इतनी मार-पीट होती है कि हिम्मत नहीं
होती, वहां पानी लेने की।
इसलिय अपने साले के ऑटो पर रोज यहाँ पानी लेने आ जाता हूँ।
उई पेशे से
पलंबर हैं।
3 टिप्पणियां:
अंशु जी
पानी की समस्या देश व्यापी है. कोई एक दशक पहले भोपाल की याद है जब हरियाली और पानी का बाहुल्य था अब इस्तिथि एक दम बदल गयी है. नदियों और तालाबों के दोहन पर जोर अधिक है क्यों की आबादी बढ़ गयी है. मेरा एक शेर है:
एक नदी बहती कभी थी जो यहाँ
बस गया इन्साँ तो नाली हो गयी.
नीरज
बड़ी विकट स्थिति है भाई!
समस्या वाकई गम्भीर है.
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