गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

जेएनयू के क्षद्म प्रगतिशील


यह किस्सा कई दिनों से लिखने की सोच रहा था, बात जेएनयू के विपिन भाई की है. जिनसे पिछले दिनों बात हुई. इस बात चित में उस विश्वविद्यालय की वह पूरी छवि मटियामेट हो गई, जो कई वर्षों से मेरे जेहन में थी. आज भी नीलाम्बुज जब कहता है कि जे एन यूं एक रोग की तरह है, एक बार लग जाए तो ताउम्र नहीं छूटती. उसके कमिटमेंट को देखकर उसकी बात का वजन बढ़ जाता है, तभी तो सुनील भाई जैसे लोग जेएनयू छोड़ने के २५ साल बाद भी यदि २ घंटे के लिए भी दिल्ली आएं तो जेएनयू जाना नहीं भूलते. खैर, उस रोग के साथ एक दूसरे रोग के सम्बन्ध में विपिन भाई ने भी बात-चित की, छद्म प्रगतिशील समूहों के सम्बन्ध में. बातें तो कई सारी हैं लेकिन उन बातों पर विस्तार से चर्चा फिर कभी. आज सिर्फ उन तथाकथित प्रगतिशीलों के क्षद्म धर्मनिरपेक्षता की चर्चा. बकौल विपिन भाई -यह प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष वहीं हैं जिनके लिए दुर्गा पूजा और सरस्वती पूजन में शामिल होना तो साम्रदायिकता को बढ़ाने में मदद देने वाले तत्व हैं. ये लोग कभी पूजा पंडाल की तरफ रूख भी करेंगे तो छुपाते-बचाते, कहीं कोई देख ना ले. लेकिन उन्हें साम्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए इफ्तार पार्टी में जाना जरूरी लगता है. कई इफ्तार पार्टियों में जिन्हें बुलाया गया है-उनके साथ वे लोग भी शामिल होते हैं, जिन्हें नहीं बुलाया गया. आप इन झूठे धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशीलों के सम्बन्ध में क्या राय रखते हैं? दुर्भाग्यवश ऐसे लोगों की तादाद जेएनयू में बढ़ती जा रही है.

15 टिप्‍पणियां:

निशाचर ने कहा…

यह सिर्फ विचारधारा के दबाव में नहीं होता. "गुरुजनों" के कोप से बचने के लिए भी ऐसा किया जाता है. अब जिस गुरुकुल के गुरुजन ही ऐसे दोगले हों वहां शिष्यों की तो बात ही क्या..........

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

भाई !
आप कौन है ? मैं नहीं जानता ... लेकिन नीलाम्बुज और विपिन
भाई को अच्छी तरह जानता हूँ | आपने ऐसे लिखा है जैसे कोई
जे एन यू को अच्छी तरह जानने वाला लिखे ... अंतर्विरोधों को
उजागर किया ...'' छवि मटियामेट हो गई '' भी इतनी जल्दी
नहीं होना चाहिए ... मैं यहाँ का छात्र हूँ और यहाँ की सीमाओं
को जानना - सुनना चाहूँगा , परन्तु यहाँ की कुछ अच्छाइयों को
भी फैलाना चाहूँगा ... जिनपर कोई भी गर्व कर सकता है ...
नहीं तो विश्लेषण एकांगी होगा ... जहाँ तक बात '' धर्मनिरपेक्ष
प्रगतिशीलों '' के झूठ की है तो वह निंदनीय है परन्तु क्या ये लोग
भारत के अलावा किसी और मुल्क से आते हैं अथवा ये समस्याएं इस मुल्क में
नहीं है ... यह विश्व - विद्यालय कोई स्वर्ग तो नहीं है न ...
अतः जरूरी है कि किसी बात को पूर्णरूपेण देखा जाय ...
@ निशाचर
आपसे सहमत हूँ ... परंपरा ही गलत चल पड़ी है ...

आशीष कुमार 'अंशु' ने कहा…

@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
यदि वहां कुछ अच्छाई ना होती तो जेएनयू एक ऐसा रोग कैसे बनता कि कोई दो घंटे के लिए भी दिल्ली आए तो पहले जेएनयू जाए...
(सुनील भाई जैसे लोग जेएनयू छोड़ने के २५ साल बाद भी यदि २ घंटे के लिए भी दिल्ली आएं तो जेएनयू जाना नहीं भूलते.)

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

मैं आपसे भावुक नहीं , तार्किक तरीके से
इस बात को रखने की उम्मीद करता हूँ ...

Anshu Mali Rastogi ने कहा…

मित्र, प्रगतिशीलों के पास न विचार होता है न धारा। चचा नामवर को देख लीजिए।

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

@ अंशुमाली जी
ऐसा क्यों कह रहे है .......
कहीं सुना है ... '' प्रतिभाहीनों की क़द्र तभी जब प्रतिभावानों को गाली दें '' |

Pankaj Parashar ने कहा…

आपने जिन सज्जनों की चर्चा अपने पोस्ट में की है, उनसे क्या आपने चर्चा की थी और पूरी चर्चा का संदर्भ क्या था इसको पूरी तरह जाने बगैर आपके पोस्ट पर फैसलाकुन अंदाज में कुछ भी कहना कठिन है. बहरहाल दोनों सज्जन अच्छे व्यक्ति हैं, इसके बारे में मैं मुतमइन हूं.
दूसरी बात यह कि दोनों सज्जन हिंदी सेंटर के लड़के हैं और महज हिंदी सेंटर के दो लड़कों के विचारों को आधार बनाकर पूरे विश्वविद्यालय के बारे में एक राय बना लेना निहायत बचकानापन है.
अमरेन्द्र बहुत मैच्योर तरीके से बात कर रहे हैं, उनकी मांग को तवज्जोह देते हुए बहस करें, भागें नहीं। अंशुमाली जैसे उथले ज्ञानशत्रुओं से शायद इसी तरह की भाषा की उम्मीद की जा सकती है.

Unknown ने कहा…

व्यक्तिगत आरोप से बचें…। लेख का मूल विषय यह है कि कुछ लोगों को सरस्वती वन्दना साम्प्रदायिक और इफ़्तार पार्टी धर्मनिरपेक्ष क्यों लगती है? तथा प्रगतिशील किसे कहा जाये, क्या नामवर को या राजेन्द्र यादव को, या किसी अन्य सेकुलर(?) को? बहस इस पर होनी चाहिये…

NILAMBUJ ने कहा…

देखो आशीष,
जहाँ तक मुझे लगता है ऐसे कुछ छद्म लोग हैं जरूर. लेकिन वो लोग जे एन यू का प्रतिनिधित्वा नहीं कर सकते. क्योंकि यही एक ऐसी जगह है जहाँ होली में सारे चेहरे रंगों के पीछे सभी धार्मिक संकीर्णताओं को भुला देते हैं और ईद में गले मिलकर प्यार को भी बढाते हैं. सरस्वती पूजा या दुर्गा पूजा में भी जो लोग जाना चाहते हैं वो चले ही जाते हैं. लेकिन कोई उन्हें रोकता नहीं है. क्या कल्पना कर सकते हो की किसी और रिहायशी विश्वविद्यालय में इतना सौहार्द्र है विद्यार्थियों में? आज भी जितना लोकतान्त्रिक माहौल जे एन यू में है मुझे नहीं लगता की कहीं और है. हाँ, इसके भी कुछ विरोधाभास हैं लेकिन उन्हें रेखांकित करके जे एन यू को बदनाम क्यूँ करना? जिस तरह ग़ालिब ने कहा है--
ग़ालिब बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है की सब अच्छा कहें जिसे.

अमरेन्द्र सर और पंकज पराशर जी ने जो कहा है मैं उस से सहमत हूँ.

iqbal abhimanyu ने कहा…

जे. एन. यू. का छात्र होने के नाते आपकी पोस्ट पर कुछ डिफेंसिव हो जाना शायद मेरे लिया स्वाभाविक है,
आपने जिस दोहराव की बात कही है वह दिखाई तो देता है, लेकिन मुझे लगता है की आपत्ति तभी होनी चाहिए जब कोई व्यक्ति जो सामान्यत: दुर्गा पूजा आदि में जाता हो या जाना चाहता हो लेकिन सामाजिक दबाव के कारण नहीं जा पा रहा हो. अगर कोई स्वविवेक से यह निर्णय ले की उसे दुर्गा पूजा में नहीं जाना और ईद मिलन में जाना है तो यह उसका व्यक्तिगत निर्णय है इसमें हम - आप उसकी निंदा कैसे कर सकते हैं ?
साथ ही आमतौर पर बहुसंख्यक समाज और अल्पसंख्यक एक दूसरे से कटे रहते हैं, अत: इस तरह के अवसर हमें. मेल - जोल का अवसर देते हैं, क्या दुर्गा पूजा में किसी मुस्लिम का आना स्वीकार किया जाएगा? साथ ही क्या उसे मूर्ति पूजा में शामिल नहीं होना पड़ेगा?, शायद यही कारण है की जे. एन. यू. में बड़ी संख्या में छात्र इफ्तार और ईद मिलन में शामिल होते हैं. हाँ इस बात को माना जा सकता है की इनमे से कई का सांप्रदायिक सद्भाव दिखावटी या राजनैतिक कारणों से प्रेरित होता है, लेकिन सभी का ऐसा वर्गीकरण मुझे ठीक नहीं लगता.
क्या आप स्पष्ट करेंगे की यहाँ किन सुनील भाई की बात की गयी है, ऐसा केवल कुछ व्यक्तिगत जिज्ञासा के तहत पूछ रहा हूँ.
आपका
इकबाल अभिमन्यु, बी.ए. तृतीय वर्ष, स्पैनिश . जे.एन.यू.

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

JNU भी क्या करे बेचारा...कुछ अच्छी परम्पराओं के लिए अपनी जगहंसाई करवा लेता है...पर लोग काश थोड़ा सम्यक होकर राय रखते. भाई अमरेन्द्र जी से बात करने के लिए तर्कसम्मत होना होगा..वैसे भी कोई ऐसी-वैसी हेडिंग नहीं बनाई है आपने अपने पोस्ट के लिए...यह तो महसूस करते ही होंगे आप..!!!

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

@अंशुमाली रस्तोगी जी


(आपका पूरा प्रोफाईल भी पढ़ आया हूँ..)

आपको तो कभी भी सकारात्मक टिप्पणी करते देखा नहीं है. हर जगह पर्दाफाश करने के चक्कर में चक्कर खा जाते हैं आप...जाहिर मेरी टिप्पणी अच्छी नहीं लगेगी आपको..ऐसे ही आपकी टिप्पणी की भाषा भी दूसरों को परेशान करती है...

आशीष कुमार 'अंशु' ने कहा…

Sunil Bhai Ne Economics se PHD kee hai aur in dino Hoshngabad (MP) me ek samaajik karykarta kee haisiyat se karyrat hai...

आशीष कुमार 'अंशु' ने कहा…

@Iqubal Abhimanyu-
Sunil Bhai Ne Economics se PHD kee hai aur in dino Hoshngabad (MP) me ek samaajik karykarta kee haisiyat se karyrat hai...

iqbal abhimanyu ने कहा…

Dhanyavad, to ye wahi Sunil bhai hain jo maine socha tha...

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम