कि प्रशासन को भी इसे गंभीरता से लेना पड़ा। वरना रोज कितनी ही निरुपमाएं मरती
हैं, किसी को परवाह नहीं होती, सिवाय उन पत्राकारों के जो सिंगल कॉलम की खबर
लिखकर अपनी जिम्मेवारी खत्म मानते हैं या इलैक्ट्रानिक मीडिया के वे बाइट
कलेक्टर जो इस मौत की अच्छी पैकेजिंग करके ‘सनसनी’ बनाते हैं।*
प्रियभांषु लगातार निरुपमा के प्रेमी के तौर पर प्रचारित हो रहा है, प्रचार पा
रहा है। यह बात प्रियभांषु कभी नहीं कहता। वह सिर्फ इतना ही कहता है- ‘हम अच्छे
दोस्त थे।’ क्या दोस्त होने और प्रेमी होने का अंतर मीडिया नहीं समझती? या
मीडिया प्रियभांषु के ऊपर निरुपमा का प्रेम थोप रही है और प्रियभांषु के प्रेम
को प्रचारित कर रही है। चूंकि प्रियभांषु का प्रेम जुड़ने मात्र से निरुपमा और
प्रियभांषु की कहानी को एक एंगल मिलेगा। खबरों की दुनिया में हर स्टोरी को एक
एंगल चाहिए। यहां एंगल विहीन खबरों के लिए कोई जगह नहीं है। वरना ओलम्पिक
खिलवाड़ के नाम पर दिल्ली से जो हजारों लोग बेघर हुए वे खबर क्यों नहीं बनते?
क्योंकि इसमें खबर क्या है?
![](http://3.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/S-gACJwA5dI/AAAAAAAABrg/JMsZosKIUII/s320/Nirupama_Pathak_with_Priyabhanshu_Ranjan_400_962828280.jpg)
दिल्ली की सरकार ब्लू लाइन बसों को सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था से अलग करने की योजना बनाती है। उस बीच में पूरा एक दौर चलता है, जब दिल्ली की हर ब्लू लाइन बस ब्लू लाईन बस नहीं बल्कि किलर बस के नाम से पुकारी जाने लगती है। आतंक का माहौल इतना गहरा जाता है कि परिवार वाले फोन पर कहते हैं, सड़क पर ठीक से चलो। मतलब ब्लू लाईन
बसों से बचकर चलो। आज भी दिल्ली में ब्लू लाईन बसें हैं। एक्सीडेंट भी कम नहीं हुए। फिर भी खबरों से यह किलर बसें पूरी तरह गायब हैं।
खैर हम निरुपमा-प्रियभांषु की बात कर रहे थे। प्रियभांषु तो बेहद मासूम है- उसे
तो यह भी पता नहीं था कि निरुपमा के गर्भ में तीन महीने का गर्भ पल रहा था.
प्रेम हमारे समाज में बेहद फिल्मी हो गया है। नायक, नायिका से कहता है- अब मैं
तुमसे प्यार करने लगा हूं? मानों प्रेम कोई टेप रिकॉर्डर है। जिसे जब चाहो ऑन,
जब चाहो ऑफ कर दो। जबकि हमारे समाज में ऐसे जोड़े भी हैं। जो पिछले दस-दस सालों
से रिश्ते मे पति-पत्नी हैं। एक ही बिस्तर पर सोते हैं, लेकिन उनके बीच प्रेम
नहीं है। क्या प्रेम से हमारा मतलब सेक्स है। दो लोगों के बीच शारीरिक संबंध है
तो प्रेम होगा ही। क्या यह जरुरी है? यह थोड़ी स्टिरियो टाईप अप्रोच नहीं है।
प्रियभांषु को प्रेमी-प्रेमी कहने की जगह निरुपमा को प्रेमिका कहना अधिक न्याय
संगत होगा। सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि निरुपमा हमारे बीच नहीं है, ना ही यह बात
किसी सहानुभूमि में कही जा रही है। बल्कि इसलिए क्योंकि उसने अपने गर्भ में तीन
महीने तक एक नए जीवन को संभाल कर रखने का साहस दिखाया। जबकि आज के समय में कम
पढ़े लिखे लड़के लड़कियों को भी पता है, किस तरह की सावधनी बरत कर गर्भ से बचा जा
सकता है। और गर्भ ठहर जाए तो किस प्रकार उससे निजात पाई जा सकती है। इन तमाम
रास्तों के बावजूद कोई लड़की मां बनने का साहसी निर्णय लेती है तो इसके पीछे
प्रेम छोड़कर और क्या वजह होगी?
![](http://1.bp.blogspot.com/_w0i8ZCWf9H8/S-f_-yUMGlI/AAAAAAAABrY/iFFYo_ICdrk/s320/nirupama_228595540.jpg)
प्रियभांषु मीडिया के सामने इतना बताता है कि निरुपमा उसकी अच्छी दोस्त थी, उसे
बिल्कुल पता नहीं था कि वह गर्भवति है। तीन महीने के गर्भ की अवधि छोटी अवधि
नहीं होती। दूसरा यदि निरुपमा ने अपने जीवन की इतनी बड़ी घटना प्रियभांषु के साथ
शेयर नहीं की तो इसके पीछे की वजह क्या होगी? जबसे कोडरमा पुलिस ने प्रियभांषु
को तलब किया है। डर सिर्फ इतना है कि तमाम मीडिया हाईप के वावजूद दोनों
परिवारों में समझौता हो जाएगा और निरुपमा की कहानी इस समझौते की बलि चढ़ जाएगी।
उसके बाद, प्रियभांषु अपनी नौकरी में मस्त, निरुपमा के परिवार वाले अपने धंधे
में मस्त और मीडिया संस्थान/ समूह अन्य खबरों में व्यस्त हो जाएंगे। सबको फिर
उस दिन निरुपमा की याद आएगी, जब कोई और निरुपमा तीन महीने के गर्भ के साथ घर
बुलाई जाएगी और उसके बेडरुम में पंखे से लटकी उसकी लाश मिलेगी।
2 टिप्पणियां:
हाँ सच ही कहा आपने , कुछ दिंन बाद सब खामोश हो जायेंगे और फिर इन्तजार करेंगे किसी और निरुपमा का ।
सही कह रहे हो आशीष। अस्त व्यस्त में से अस्त नदारद और व्यस्त जाहिर। यही नियति है।
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