शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

निर्मल कथा : (उंगलबाज.कॉम, हमारी विश्वसनीयता संदिग्ध है)

                                              -एक-
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एक मार्क्सवादी, बाबा निर्मल के दरबार तीन हजार रूपए की पर्ची कटाकर भक्त वेश में पहुंचे। उंगलबाज.कॉम के तमाम संवाददाता यह पता नहीं लगा पाए कि मार्क्सवादी पत्रकार साथी बाबा के भक्त बनकर आयोजन में आए थे या फिर वे अपने चैनल के लिए कोई स्टिंग करना चाहते थे।
मार्क्सवादी साथी के हाथ में माइक आते ही, उन्होंने बाबा के चरणों में शत-शत नमन किया।
बाबा-‘यह तुम्हे देखकर दास कैपिटल क्यों नजर आ रहा है?’
मार्क्सवादी पत्रकारः ‘बाबा मैं मार्क्सवादी हूं। शायद इसलिए।’
बाबाः- ‘क्या दास कैपिटल तुमने पढ़ी है?’
मार्क्सवादी पत्रकारः ‘नहीं बाबा।’
बाबाः- ‘तुम्हारी सारी कृपा वहीं रूकी हुई है। जाओ पहले खुद दास कैपिटल पढ़ो और अपने पांच संघी मित्रों को ‘दास कैपिटल’ खरीद कर भेंट करो। उसके बाद ही तुम पर कृपा आएगी।’

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                                                                     -दो-
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‘बाबा के चरणों में शत-शत नमन। मेरा नाम दिग्विजय सिंह है। बाबा मध्य प्रदेश से आया हूं।’
‘यह तुम्हे देखकर सोनिया गांधी क्यों नजर आ रही है?’
‘बाबा मैं कांग्रेस पार्टी से ताल्लुक रखता हूं। हो सकता है, यही वजह हो।’
‘अंतिम बार सोनियाजी से कब मिले थे?’
‘तीन दिन हो गए बाबा।’
‘तुम्हारी सारी कृपा वहीं रूकी हुई है। सोनियाजी से सुबह-शाम मिला करो। कृपा बिना रूकावाट बरसेगी।'

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                                                                      -तीन-
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‘बाबा मेरा नाम नरेन्द्र मोदी है, गुजरात प्रान्त से आया हूं। वहां मैं सात करोड़ गुजरातियों का नेतृत्व करता हूं।’
‘तुम्हे देखकर यह टोपी क्यों नजर आने लगी?’
‘बाबा अपनी सद्भावना यात्रा में एक मौलाना की टोपी को पहनने से मैने इंकार कर दिया था। संभव है, जो नजर आ रही है, वही वाली टोपी हो।’
‘पूरे देश को टोपी पहनाने का इरादा है तो टोपी पहननी चाहिए थी। तुम्हारी सारी कृपा उसी टोपी पर रूकी हुई है।’
‘निदान क्या है बाबा?’
‘अगली सद्भावना यात्रा में टोपी-तिलक उत्सव करो। टोपी पहनाओ-तिलक लगाओ। कृपा आएगी।’
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                                                                   चार
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'बाबा चरणों में कोटी-कोटी प्रणाम बाबा। उत्तर प्रदेश से आया हूं बाबा। मुलायम सिंह यादव नाम हुआ। पिछले समागम में आपका आशीर्वाद मिला था। अपना बच्चा उसके बाद प्रदेश में सरकार बना लिया है बाबा। आशीर्वाद बनाए रखिए।'
‘यह तुम्हारे आते ही नजर के सामने मस्जिद की दीवार क्यों नजर आने लगी? तुम्हारी सरकार है, तुमने गिरवाई है क्या?’
‘क्या बात कर दी बाबा। मैं तो मस्जिद प्रेमी, धर्म निरपेक्ष नेता हूं। समाजवाद की राजनीति करता हूं। लगता है बाबा उमर का असर आप पर होने लगा है।’
‘रूको! रूको! यह नोट का बंडल कैसा है, मस्जिद के दीवार के साथ। यह नोट क्यों नजर आने लगा?’
‘वह हमारे पार्टी के ही नेता हैं भाटी, उन्होंने मस्जिद निर्माण के लिए पचास हजार रूपए दिए थे। वही रूपया आपको दिख रहा है। बाबा इसी मुसीबत से निकलने के लिए तो आए हैं आपके पास।’
‘उसी नोट के बंडल पर सारी कृपा अटकी हुई है। भाटी से कहो, पचास लाख रूपए मस्जिद के लिए चंदा दे और विशाल मस्जिद निर्माण कराए। और पचास-पचास हजार के नोेट के बंडल कम से कम पांच पीर की मजार के दान पात्र में रख कर चुपके से लौट आए। तुम्हारी पार्टी पर रूकी हुई बड़ी कृपा आएगी।’





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आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम