नवम्बर में इसी साल लन्दन में पहली बार 'अन्तरराष्ट्रीय जनसंपर्क एजेन्सी' और संयुक्त राष्ट्र के संयुक्त तत्वावधान में एक भारतीय जनसंपर्क एजेन्सी को 'आईपीआरए गोल्डन अवार्ड' से सम्मानित किया जाएगा। सम्मानित भी क्यों न किया जाए! उसने भारत जैसे संस्कार-संस्कृति पर गर्व करने वाले देश में कंडोम जैसे उत्पाद का इतना बड़ा बाजार खड़ा करने का चमत्कार कर दिखाया है। कंपनी का नाम है, 'कारपोरेट वाइस/वेबर शैंडवीक।' भारत में कंडोम की बिक्री बढ़ाने के लिए इसने एक नायाब तरीका ढूंढा। यह तरीका था, 'बिन्दास बोल-कंडोम बोल' के विज्ञापन का। आपने भी यह विज्ञापन जाने-अंजाने में देखा होगा। इस कैम्पेन में कंडोम की बिक्री करने वाली दुकानों पर कुछ उपहार की व्यवस्था की गई थी। यदि ग्राहक बिना किसी संकोच के दुकान पर आकर कंडोम की मांग करता था तो उसे दुकानदार पुरस्कार देते थे। यह कैम्पेन हिट हुआ और कंडोम के भारतीय बाजार में 22 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। जिन 8 राज्यों दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड को केन्द्र में रखकर यह कंडोम कैम्पेन चलाया गया था, वहां वृद्धि 45 फीसदी रही।
प्राइवेट सेक्टर पार्टनरशिप फार बेटर हेल्थ (पीएसपी-वन), यूनाइटेड स्टेट एजेन्सी फार इंटरनेशनल डेवलपमेन्ट (यूएसएआईडी), प्रोजेक्ट, आईसीआईसीआई बैंक और भारतीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की सहायता से 'वेबर शैंडवीक' ने भारत में अपना कैम्पेन चलाया। एजेन्सी अपने कैम्पेन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहती है कि ''कंडोम उपेक्षा का शब्द नहीं है। लोग इस बात को समझें और इसके संबंध में बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वतंत्रता पूर्वक बात करें। दूसरे लोग इस बात को समझें कि यह व्यक्ति विशेष के लिए नहीं बना, हर खासों-आम इसका इस्तेमाल कर सकता है।''
अतुल अहलुवालिया कारपोरेट वर्ल्ड/वेबर शैंडवीक के पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्रीय प्रमुख हैं। बकौल अहलुवालिया- ''यूएन अवार्ड का मिलना सिर्फ वेबर शैंडवीक की उपलब्धि नहीं है। हमें खुशी इस बात की है कि हमारे प्रयास को अंतरराष्ट्रीय मंच पर सराहा जा रहा है।'' आईपीआरए निर्णायकों ने कुल 21 श्रेणियों में पुरस्कार की घोषणा की। वेबर शैंडवीक को एनजीओ श्रेणी में यह पुरस्कार मिला है। इस प्रतियोगिता में 46 देशों से 405 प्रविष्टियां आई थीं। इसमें से 107 पुरस्कार के अन्तिम दौड़ में शामिल हुई थीं।
यह तो कंडोम कथा का एक पक्ष है। अब आइए आपका कथा के भारतीय-पक्ष से परिचय कराएं। वास्तव में बिन्दास बोल 'सेफ सेक्स' के पश्चिमी पैटर्न को वाया कंडोम भारत में लाने की साजिश जैसा ही है। हमें इस बात से संभल जाना चाहिए। हाल ही में राजधानी में आयोजित एक कार्यक्रम में आर्कबिशप मुम्बई की प्रतिनिधि बनकर डा। थाइलामा आई थीं। उन्होंने साफ शब्दों में कहा, ''भारत के अंदर जिस कंडोम का बाजार बढ़ाने के लिए तमाम तरह की कवायद हो रही है, वैज्ञानिक दृष्टि से यह भी एचआईवी से सौ फीसदी सुरक्षा नहीं देता। अनैच्छिक गर्भ से भी यह सौ फीसदी मुक्ति नहीं देता।'' जहां तक एड्स से बचाव और सुरक्षा का सवाल है तो इसके लिए एक नायाब तरीका सुझाया सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर.एस. लाहौटी ने। वे कहते हैं, ''यदि दुनिया एक पति-एक पत्नी की भारतीय परंपरा को अपनाए तो एड्स नामक बीमारी का अपने आप दुनियां से खात्मा हो जाएगा।'' वे ब्रिटेन का उदाहरण देकर बताते हैं कि सन् 1998 तक वहां 64.8 फीसदी लड़कियां 18 साल से कम उम्र में गर्भवती हो गईं थीं। यह आंकड़ा 4 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से बढ़ता जा रहा है। अमेरिका में यह आंकड़ा 83 फीसदी का है। कनाडा में हालत और भी बुरी है। पश्चिमी देशों में समलैंगिकों और रक्त संबंधियों में यौन संबंध का चलन भी बढ़ता जा रहा है। क्या हम कभी चाहेंगे कि यह सब कुछ भारत में भी हो। यदि नहीं तो हमें तथाकथित समाजसेवियों के 'सेक्स एजुकेशन' और 'बिन्दास बोल' जैसे कैम्पेन का पुरजोर विरोध करना ही चाहिए।'
(यह लेख आप यहाँ भी पढ़ सकते हैं - http://www.bhartiyapaksha.com/mag-issues/2007/oct07/kaisaboaibindas.html )
शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2007
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3 टिप्पणियां:
आपने एक अच्छे विषय पर विचारा है।
किसी भी चीज की अति अक्सर बुरी होती है। कण्डोम के प्रचार के मामले में भी हमे संतुलन का ध्यान रखना पड़ेगा। भारत में यौन-सम्भन्धी बातचीत एवं संचार कभी भी पाप/तोबा/त्याज्य नही माना गया। इसलिये 'कण्डोम' शब्द को जिह्वा पर लाने से हमारी संस्कृति को कोई आँच नहीं आने वाली है। दूसरी तरफ संयम, त्याग, संतोष आदि हमारे लिये सदा से ही वांछित गुण रहे हैं। इन दोनो का सम्यक मिश्रण ही हमारे लिये उपयुक्त है।
लोगों का यह कहना कि कण्डोम जैसी वस्तुओं के बारे में स्पष्ट बात करना या लोगों को सलाह देना कि वे इनका इस्तमाल करें, जैसी बातों से विवाह के बाहर सेक्स फ़ैलता है या नवयुवक और नवयुवतियों को गलत आचरण करने की प्रेरणा मिलती है मेरे विचार में वह लोग सच्चाई से मुँह छुपाना चाहते हैं. मैं सोचता हूँ कि सेक्स मानव जीवन का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा, चाहे हम जितनी भी रोक लगायें हमेशा से ही यही हुआ है वरना वेश्यावृति को संसार का सबसे पुराना धँधा नहीं कहते. चाहे बात एडस या अन्य सेक्स सम्बंधी बीमारियों से बचने की हो या परिवार नियोजन की, दोनों ही बातों में कण्डोम का इस्तमाल का महत्वपूर्ण स्थान है. यह हो सकता है कि 1 प्रतिशत व्यक्तियों को इससे पूरी सुरक्षा न मिले, पर बाकी 99 प्रतिशत को तो मिलती है, और उसे झुठलाना गलत बात है. जो लोग धर्म की या नैतिकता की दुहाई दे कर चाहते हैं कि यह बातें परदे के पीछे छुपी रहें, मुझे लगता है कि वह उसी समाज का नुक्सान करते हैं जिसे बचाना चाहते हैं.
बहुत बढिया आशीष। भारत को भारत ही रहने दो, इसे अमेरिका मत बनाओ।
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