शनिवार, 3 नवंबर 2007

लघु पत्रिका सम्मेलन - एक प्रेरक प्रसंग

दिल्ली में इन दिनों लघु पत्रिका सम्मेलन चल रहा है, इसमे आय थे, नवारून भट्टाचार्य। महाश्वेता देवी के पुत्र नवारून बांग्ला साहित्य पत्रिका 'भाषा बन्धन' के संपादक हैं। जब वह मंच पर आय तो कहा कि 'मेरी हिन्दी अच्छी नहीं है, इसलिय अंगरेजी में बोलना चाहता हूँ।' इसके लिय पीछे बैठे रामशरण जोशी की टिप्पणी काबिलेगौर थी, उन्होने कहा कि 'आप बांग्ला में बोलिय, हम उसका हिंदी अनुवाद करा लेंगे।' हुआ भी यही वह बांग्ला में बोलते रहे, साथ-साथ उनकी बात का हिन्दी अनुवाद भी हुआ। वह बांग्ला बोलते-बोलते कब हिन्दी में बोलने लगे, शायद इसका एहसास उन्हें भी नही हुआ हो।

5 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

एक अच्छा प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किया है...बधाई।

बालकिशन ने कहा…

सही. एक अच्छा,रोचक और शिक्षाप्रद प्रसंग प्रस्तुत की आपने. बधाई.

dpkraj ने कहा…

आपका ब्लोग देखा. आप बहुत बढिया लिख रहे हैं है इस जारी रखिये.
दीपक भारतदीप

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

विल्कुल सच कहा है भाई , यह बहुत बड़ी विडम्बना है हमारे देश के लिए की हिन्दी बोलने में संकोच होता है , वह भी एक प्रतिष्ठित संपादक के द्वारा . शायद विधाता को यही मंज़ूर है .एक अच्छा प्रेरक प्रसंग प्रस्तुत किया है...बधाई।

काकेश ने कहा…

अच्छा प्रसंग.

http://kakesh.com

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम