क्या आपने दिल्ली में अमीर खुसरो पार्क का बस पड़ाव देखा है। यह मथुरा रोड़ पर ओबेरॉय होटल और दिल्ली पब्लिक स्कूल के साथ में ही है। आज वहाँ से बस में गुजरना हुआ। ४२५ नम्बर की बस में मेरे साथ जो सज्जन बैठे थे, उन्होने बातचीत शुरू की।
दिल्ली की सरकार का दिमाग खराब हो गया है। यह अमीर खुसरो क्या होता है? यहाँ ओबेरॉय जैसा फाइव स्टार होटल है, डीपीएस है, इनको छोड़कर किसी खुसरो के नाम पर स्टैंड बना दिया इन्होने।
मैंने सिर्फ उनसे पूछा
'क्या आपने अमीर खुसरो का नाम नहीं सूना?'
'अरे भाई होगा कोई पार्षद इस इलाक़े का, मरा होगा तो बना दिया पार्क और एक बस स्टॉप उसके नाम पर। यही तो होता है इस देश में।'
'भाई आप बताओ कला की कोई क़द्र है कहीं इस देश में, कलाकार को कोई पूछने वाला नहीं।'
साथ वाले सज्जन बोलते-बोलते भावुक हो गय और मुझे उनकी बात सुनकर रोना आ रहा था। कला-कलाकार की बात करने वाला आदमी अमीर खोसरो को नहीं जनता।
मैंने हिम्मत करके कहा-
'भाई साहब खुसरो पार्षद नहीं थे।'
'तो विधायक होगा यहाँ का, क्या फर्क पड़ जाता है इससे।'
'नहीं वह विधायक भी नहीं थे।'
इस बार उन सज्जन ने मुझे खा जाने वाली निगाहों से देखा,
'तो कोई प्रधानमंत्री था, तू बता कौन था खुसरो?'
मुझे लगा इनसे अब बात करना ठीक नहीं है। जितनी बड़ी-बड़ी बात वे बस में बैठ कर, कर रहे थे, शायद वह उतने सवेंदनशील थे नहीं।
वह कहते हैं ना-
गुफ्तगू से होता है सख्सियत का अंदाजा,
कि कितना उथला पानी है और कितना गहरा है दरिया।
खैर क्या आपको पता है यह खुसरो कौन था, अगर पता है तो-
तू बता कौन था खुसरो?
सोमवार, 12 नवंबर 2007
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2 टिप्पणियां:
अगर खुसरो के अल्फ़ाज़ में ऊपरी तौर पर कला के प्रति सम्वेदनशील इन साहब के बारे में कहें तो - चूँ खरपुजा ददांश मियाने शिकम् अस्त। :-)
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