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बुधवार, 2 जनवरी 2008
चिराग के दोहे
तलवे याद न रख सकें मिट्टी का एहसास
इतना ऊंचा मत करो सपनों का आकाश
समझ समझ की बात है, समझ समझ का फेर
सब उसके ही नाम हैं, राम रहीम कुबेर
एक संग आकर कहें, कातिक औ' रमजान
एक जिल्द में बाँध दो, गीता और कुरान
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आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम
मेरे बारे में
आशीष कुमार 'अंशु'
हमने तमाम उम्र अकेले सफ़र किया हमपर किसी खुदा की इनायत नहीं रही, हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग रो-रो के बात कहने की आदत नहीं रही।
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
अपनी ही कहते रहोगे या मेरी भी सुनोगे सरकार....!!!
हम हैं दिल की आवाज़...
न किसी का ज़ात जानते हैं,
न किसी की औक़ात जानते हैं....
जो सही लगे, बिन्दास बोलते हैं ....
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