शनिवार, 6 दिसंबर 2008

राजेन्द्र माथुर की चिंता (पत्रकारिता)

... १९४७ के पहले भी हिन्दी पत्रकारिता में ऐसे लोग आते थे जो विफल साहित्यकार होते थे. पर १९४७ के बाद से तो इसमें काफी व्रद्धी हुई है. थर्ड रेट के साहित्यकार पत्रकारिता में आने लगे और ऐसे लोग भी आए जो इसको अपने लायक काम नहीं मानते थे. ऐसे लोगों ने पत्रकारिता को घटिया बनाया. ... मेरे ख्याल से हिन्दी पत्रकारिता के विकास में यह बहूत बड़ी बाधा रही है और उसका ताल्लुक इससे जुड़ता है कि ... घटिया साहित्यकार पत्रकारिता में आ गए. अब जब घटिया साहित्यकार पत्रकारिता में आएगा तो वह न तो भाषा समझता है और ना ही पत्रकारिता समझता है.

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

ab manager log patrakarita ko chala rahe hai....patrakarita me kam karane wale logon ko gaur se dekhiye....patrakarita me ek naya post aa gaya hai managing editor...dekhiye is managing editor ka kam kaya hai?

रंजना ने कहा…

patrakarita ka girta hua sthar sachmuch sochniy hai.

विष्णु बैरागी ने कहा…

रज्‍जू बाबू की इस सर्वकालिक टिप्‍पणी के जरिए आपने किसे निशाने पर लिया है भैये ।

बेनामी ने कहा…

aap morkh hai
vats76@gmail.com

बेनामी ने कहा…

rajendra mathur ke sath prabhash joshi ki bhi charcha karni chahiye.

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम