
बेतिया सीट पर इस बार कांटे की टक्कर है। सब धुरंधर योध्दा खड़े हैं। लेकिन हम सोचते हैं कि बैलेट पेपर पर एक ‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प होता तो वहीं मोहर मार आते। साधु यादवजी कांग्रेस से खड़े हैं। उनके संबंध में क्या बताएं? उनको सब कोई जानता है। बिहार में कौन है, जो शाहबुद्दीन, सूरजभान, पप्पू यादव, साधु यादव को नहीं जानता हो। बिहार में रहने वाले व्यावसायियों के लिए तो ये नाम प्रात: स्मरणीय हैं।

संजय जायसवाल बेतिया से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हैं। संजय पार्टी प्रत्याशी कैसे बन गए, यह तो अरुणजी जेटली के भी लिए संशय का विषय है। राजनाथजी ने सोचा होगा कि हाल ही में पिताजी (स्व. मदन प्रसाद जायसवाल) की मृत्यु हुई है, सहानुभूति के वोट के सहारे संजय वैतरणी पार कर जाएंगे। लेकिन बेतिया की जनता बहूत कन्फ्यूजन में है। यह संजय भाजपा उम्मीदवार है या लालटेन का। हो सकता है संजय के बहुत से चाहने वाले बैलेट पर उन्हें लालटेन में तलाशें। और वहां लालटेन ना मिलने पर निराश होकर लौट आएं। ज्यादा मुश्किल उन भाजपाइयों के लिए भी है, जिन्होंने पार्टी छोड़कर जानेपर जायसवाल परिवार को पानी पी-पी कर कोसा है। संजय के पिता डा. मदन प्रसाद जायसवाल को भाजपा उम्मीदवार के तौर पर बेतिया की जनता ने सिर आंखों पर रखा, उस दौर में जब राज्य में राजद का बोलबाला था। विधानसभा में ‘इन्हीं ंसंजय’ को टिकट ना मिलने की वजह से ‘इन्हीं संजय’ के दबाव में आकर पिता ने राजद का दामन थामा था। और आज भाजपा ‘इन्हीं संजय’ को अपना उम्मीदवार बना रही है। इस फैसले से बिहार में पार्टी कितनी लाचार है, यही बात साबित होती है।इन तीन बड़े उम्मीदवारों के बाद कुल जमा बचे दो ‘टक्कर’ में शामिल उम्मीदवार। एक गुप्ता फोटो स्टेट वाले शंभू प्रसाद गुप्ता। जो बहुजन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं। दूसरे हैं सीपीएम की तरफ से चुनाव लड़ रहे सुगौली विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक रहे रामाश्रय प्रसाद सिंह। यह उम्मीदवार द्वय चुनाव जीतने के लिए चुनाव लड़ ही नहीं रहे हैं। जमानत बचाने के लिए मैदान में है। यदि इन दोनों ने अपनी जमानत बचा ली, यही उनकी सबसे बड़ी जीत होगी। जय हो!!!"
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