


जब हमने उनसे पूछा कि आपको कभी कुछ असहज लगता है तो उनका जवाब था कि वो अपना काम करती है बस अजीब यह लगता है कि कल जो छोटी सी बच्ची फ्रॉक पहने यहाँ टॉफी बिस्किट खरीदती थी वो आज खिड़की के पीछे से ग्राहकों की बाट जोहती है, इशारे करती है। वो वेश्यावृत्ति में लग जाती है। इन्ही के माध्यम से हम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। रामशरण धर्मेन्द्र (बदला हुआ नाम) नाम के एक व्यक्ति को हमारे साथ कर देते हैं जो हमें आगे का रास्ता दिखाता है। घनी दुकानों के बीच कोठे पर जाने के रास्ते का अनुमान लगाना काफी कठिन था। धर्मेन्द्र आगे चला और दुकानों के बीच से एक संकरी और अँधेरी सीढियों से ऊपर ले गया। ऊपर एक अलग ही दुनिया थी। एक बड़े से हालनुमा कमरे में मुजरे की एक बड़ी तस्वीर लगी थी और सामने एक दलाल बैठा था।18 से 30 साल की लड़कियां इधर से उधर घूम रही थी। शाम के करीब 5 बजे थे उनके लिए यह सुबह का समय था। सभी लड़कियां नींद से जागी थी और दिनचर्या शुरू ही की थी। नाईटी और गाउन में लड़कियां साबुन ब्रश लिए बार-बार उस कमरे से गुजरती जिस कमरे में हम बैठे थे और हम पर नजर डालती। लेकिन बात करने के लिए कोई तैयार नहीं होती थी।
सीढियों से अन्दर घुसते ही पहले वो खूबसरत कमरा था जिसमे ऊपर फानूस लटक रहा था। नीचे बिछे गद्दे पर बड़े गोल तकिये लगे थे। इसी खूबसूरती के पीछे छुपी थी काली असलियत। संजीव दलाल (बदला हुआ नाम) जो सभी लड़कियों की निगरानी कर रहा था और हमसे बात भी कर रहा था, उसने बताया कि एक बिल्डिंग में कई कोठे हैं और सबके मालिक अलग अलग होते हैं। इसी बीच वहां पर कुछ ग्राहक भी आ गए जिनको दलाल ने उस वक्त डांट कर भगा दिया। जब हमने लड़कियों के रहन सहन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि एक कमरे में आठ से दस लड़कियां रहती है। उसने दिल्ली के कई पाश इलाके के नाम बताए जहाँ पर खुले आम वेश्यावृत्ति होती है। उसने बताया कि पहड्गंज, लक्ष्मी नगर, पटेल नगर के अलावा और भी कई अच्छे इलाको मे यह करोबार यहा से ज्यादा चलता है।
बातचीत के दौरान ही हम हॉलनुमा कमरे के सामने दिख रही अँधेरी गली से अन्दर जाने में सफल रहे, जहाँ इन महिलाओं के रहने के लिए कोठरीनुमा कमरे बने हुए थे। वहां पर बेहद छोटी जगह में बनी रसोई में बैठी माला देवी से बात हुई। 40 साल की मालादेवी अब धंधा नहीं करती वो नई लड़कियों के लिए खाना बनाने का काम करती है। उसकी माँ भी इसी कोठे का हिस्सा थी। अन्दर की स्थिती काफी अमानुषिक थी। एक मंजिले मकान में नीची छत पाटकर दो मंजिल में विभाजित कर दिया गया था। कमरे से ही लकडी की खड़ी सीढ़ी ऊपर जाने के लिए लगी थी। जिसे ग्राहक के ऊपर जाने के बाद हटा लिया जाता है। ऊपर से कुछ महिलाओं ने हमें झाँक कर देखा। हमारे प्यार से हैलो कहने का जवाब इनके पास नहीं था। यहाँ हमसे कोई भी लड़की बात करने के लिए तैयार नहीं हुई। हम वापस दलाल के पास आए उसने कई तरह के बहाने बनाए कि कोठा मालकिन अभी शादी में गयी है। उसकी आज्ञा के बिना यहाँ कुछ भी नहीं हो सकता। इसलिये वेश्याओं से बात करने के लिए हम दूसरी मंजिल पर बने एक अन्य कोठे में गए। यहाँ भी हमें वैसा ही माहौल मिला पहले-पहल कोई भी लड़की बात करने के लिए राजी नहीं हुई लेकिन उन्हें समझाने के बाद कुछ ने अपने दिल के राज खोले। देखने में मासूम और खूबसूरत ये लड़कियां कहीं से भी आम लड़कियों से जुदा नहीं थी। यहाँ पर हम वेश्यावृत्ति करने वाली आरजू से मिले। आरजू जितना खूबसूरत नाम है उतनी ही वो खूबसूरत भी थी। लेकिन उसकी हकीकत कहीं ज्यादा बदसूरत थी। राजस्थान के छोटे से गांव से आई आरजू की शादी हो चुकी है, पति और पारिवार गांव मे ही रहते हैं आरजू वहां तीज त्योहारों पर जाती है। आरजू हंस कर बात कर रही थी उससे जब हमने पूछा कि उनकी दिनचर्या क्या होती है तो उनका कहना था कि "रात भर काम करने के बाद हम सुबह में सो पाती हैं और शाम को जागती हैं। ब्रश करती हैं, नहाने और नाश्ते के बाद हम मुजरे के लिए तैयार होते हैं। इसी बीच इन्हें खाना और व्यक्तिगत काम निबटाने होते। कुछ ज्यादा ना बोल दे इसलिए बीच में प्रिया आ गयी, थोड़े गठीले बदन कि प्रिया इन सबसे ज्यादा तेज दिखी लेकिन किस्मत उसकी भी धीमी थी। पास में ही बैठी बिंदिया के एक लड़का और एक लड़की है। फ़िलहाल दोनों दूर कही पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन बिंदिया को डर है कि उसकी बेटी को भी यहीं न आना पड़े। तीज त्यौहार किस तरह मनाती है पर प्रिया ने बताया कि वो दोस्तों के साथ पार्टी करती हैं। घूमने जाती हैं।
इनकी आँखों में भी सपने थे लेकिन वो सपने थे जो रात को ग्राहक दिखाते हैं और सुबह उनके साथ ही कही गुम हो जाते हैं। इससे ज्यादा ये लड़कियां खुलने को तैयार नहीं हुई। शाम को मुजरे में शामिल होने का वादा भी इन्होने हमसे लिया। हम उसी अँधेरी सीढियों से नीचे आने लगे तो आरजू कि आवाज कानों में पड़ी थी -"नाईस मीटिंग यू" उनके लिये शायद जरूर नाईस मीटिंग होगी लेकिन हम खुद को उन्हीं तंग कोठरियों में घिरा महसूस कर रहे थे। हमें लग रहा था कि वो दीवारे हमारे साथ चली आ रही है। जहाँ सिर्फ अँधेरा है और छलावा देने वाली रोशनी है।

यहाँ रहने वाली महिलाएं बाई जी कहलाती थी लेकिन ये लोग देह व्यापार नहीं करती थी। यहाँ पर राजा, महाराजा मनोरंजन के लिए आया करता थे। गाना बजाना हुआ करता था। इनके संगीत और कला को सराहा जाता था। कइ बाईयाँ तो अपनी आवाज़ और शायरी के लिये दूर्-दूर तक मशहूर थी। धीरे-धीरे यहाँ पर कोठों की संख्या भी काफी हो गयी थी। इसके अलावा जीबी रोड के पास ही सदर बाजार खारी बावली और चांदनी चौक जैसे प्रतिष्ठित मंडियां और बाजार स्थित हैं। यहाँ पर बड़े पैमाने पर व्यापार होता था और आज यह व्यापार काफी फल फूल चुका है। पहले दूर दूर से व्यापारी यहाँ आकर रुकते थे। आधुनिक मनोरंजन के साधन नहीं होने के कारण दूर से भी शौकीन लोग यहाँ पर मनोरंजन के लिए आया करते थे। बाजार आज भी वैसा ही है। लेकिन मुजरे के नाम पर देह व्यापार होने लगा है। मुजरे आज भी होते हैं क्योंकि सरकार की ओर से इन कोठों को मुजरा करने के लिए लाइसेंस मिले हुए हैं और यहाँ हर रात 9 से 12 बजे तक मुजरा होता है। पुलिस के अनुसार 12 बजे के बाद कोई भी व्यक्ति कोठे में नहीं जा सकता। 12 बजते ही पुलिस कोठों को बंद करा देती है।
13 टिप्पणियां:
इस विषय पर एक documentary बनी थी, "Born into Brothels". कभी देखियेगा।
report achhi hai. is vishay ko lekar ab tak kafi kuchh likha ja chuka hai. vavjood iske is report ko alag tarike se pesh karna ka Taruna na achha prayas kiya hai.
Taruna ki lekhni mein lagatar sudhar ho raha hai, ye dekhkar achha lag raha hai.. jab woh Mahamedha mein likhti thi aur ab mein kafi antar aaya hai. sath hi Drishtikon mein v..
अच्छा प्रयास है अंधेरी गलियों से खबर लाने का..
काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है मगर काफ़ी कुछ किया जाना है...मगर जिस समाज की यह देन है (कोठे) उस से कुछ उम्मीद करना.. एक न खत्म होने वाले इन्तजार के सिवा कुछ नहीं.
अच्छी रिपोर्ट है
बधाई आपको
बहुत उम्दा प्रयास किया इनकी जिन्दगी पर कुछ प्रकाश डाला-यूँ तो बहुत कुछ लिखा सुना जा चुका है इस विषय पर-पर स्थितियाँ नहीं बदलती.
कहते है हर सभ्य समाज के पीछे एक अँधेरी जगह होती है ..उसके छुपाये हुए चेहरों की ....अपने जीवन यापन के लिए अपनी देह का इस्तेमाल सुनने में अजीब सा लगता है पर जिंदगी हरेक के लिए कोलाज़ नहीं होती....इन्द्रधनुषी रंग समेटे हुए इसके कई भद्दे ओर बदरंग चेहरे है ..मैंने इन्हें कई बार करीब से देखा है पेशे की बदोलत...जिस गुजरात सरकार को लोग गाली देते है वो कम से कम इनके स्वास्थ्य के लिए काफी कार्य कर रही है....ये तो महज़ है एक सरसरी नजर है इनकी असल जिंदगी देखकर आप काँप जायेगे
साधारण जानकारियाँ हैं जो आसानी से सब को हासिल हो जाती हैं। पर यह धंधा क्यों फल फूल रहा है। इस का विकल्प क्यों नहीं तलाशा जाता है।
अच्छी रिपोर्ट
यह तो हर देश हर शहर में है और उनकी हालतें भी लगभग एक सी हैं.
बेहतर और बहुत ही मार्मिक घटना है. यह सवाल उठाना आपके लिए नया होगा, पेसा बहुत ही पुराने युग से चली आ रही है. बौखलाने को मन नहीं करता क्यूंकि यह सब इश भूखे और बेरोजगार देश की महिलाओ के पेट भरने और घर चलने का साधन है. सायद अचछा ना लगे पर मीठी और कड़वी दोनों सचाई इन जैसी आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओ के रोजगार है.
dost ye wo sach hai jise dur karne ke liye koi aage nahi aa raha.aasha hai ise pad kar aur dekh kar kuch soye huye logo ka jamir jage.
ये ही है हमारे समाज की काली गलियों की काली सच्चाई..मेरा भी कुछ सालों पहले इस सच्चाई से पला पड़ा..मैने कुछ अजीब महसूस नही किया बस कई दिनों तक मैं तों यही सोचता रहा की क्या हमारे समाज में इतनी गरीबी व्याप्त है की ये लड़कियां पैसो के लिए किसी को भी अपने शरीर को चील कौए की तरह नोचने देती है? लेकिन कोई बोला ये दिल्ली है मेरे भाई और ये यहाँ की हमारे सामने, पर छुपी सच्चाई है...इस मुददे पर बहुत लोग बहुत कुछ लिख चुके..आज लिखने से कुछ नही होने वाला...यथार्थ के धरातल पर कुछ करना होगा, नही तों हम एसे ही बोलते और लिखते रहे जायेंगे...बाकी अच्छा प्रयास है..
ये ही है हमारे समाज की काली गलियों की काली सच्चाई..मेरा भी कुछ सालों पहले इस सच्चाई से पला पड़ा..मैने कुछ अजीब महसूस नही किया बस कई दिनों तक मैं तों यही सोचता रहा की क्या हमारे समाज में इतनी गरीबी व्याप्त है की ये लड़कियां पैसो के लिए किसी को भी अपने शरीर को चील कौए की तरह नोचने देती है? लेकिन कोई बोला ये दिल्ली है मेरे भाई और ये यहाँ की हमारे सामने, पर छुपी सच्चाई है...इस मुददे पर बहुत लोग बहुत कुछ लिख चुके..आज लिखने से कुछ नही होने वाला...यथार्थ के धरातल पर कुछ करना होगा, नही तों हम एसे ही बोलते और लिखते रहे जायेंगे...बाकी अच्छा प्रयास है..
ये समाज के लिए बैकार है। पर कोठो कि वजह से रेप नही होँगे। ये समाज के लिए ठिक ह।
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