शुक्रवार, 1 मई 2009

चिराग की गजल

चिराग के लिए और उसकी रचनाओं के लिए क्या कहूं, बस इतना ही की .'चिराग का परिचय उसकी रचना दे तो ज्यादा बेहतर हो.'
अब चिराग का परिचय भी उसकी रचना दे तो ज्यादा बेहतर हो. इस बार चिराग की एक ताजा गजल. जो दो दिन पहले अजमेर यात्रा के दौरान हुई है. आप चाहे तो चिराग से बात भी कर सकते हैं- उसका मोबाइल नंबर है-
(०९८६८५७३६१२)
उनको लगता है ये चांदी और ये सोना अच्छा,
मैं समझता हूँ कि एहसास का होना अच्छा.

मैंने ये देख के मेले में लूटा दी दौलत,
मुर्दा दौलत से तो बच्चों का खिलौना अच्छा.

जिसके आगोश में घुट-घुट के मर गए रिश्ते,
ऐसी चुप्पी है बुरी, टूट के रोना अच्छा.

जिसके खो जाने से रिश्ते की उम्र बढ़ जाए,
जीतनी जल्दी हो उस अभिमान का खोना अच्छा.

अश्क तेजाब हुआ करता है दिल में घुटकर,
दिल गलाने से पलकों का भिगोना अच्छा.

मेरे होते हुए भी कोई मेरा घर लुटे,
फिर तो मुझसे मेरे खेतों का ड़रोना अच्छा.

जबकि हर पेड़ फकत बीच में उगना चाहे,
ऐसे माहौल में इस बाग़ का कोना अच्छा.

राम खुद से भी पराए हुए राजा बनाकर,
ऐसे महलों से वो जंगल का बिछौना अच्छा.

उसके लगने से मेरा मन भी संवर जाता था,
अब के श्रृंगार से अम्मा का डिठौना अच्छा.

8 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

chiraag bhaee ki gazal achee lagee ,gazal me jab kahan umda hoto uska maza aur dugnaa hojaata hai.. dhero badhaayee...


arsh

भगीरथ ने कहा…

मैंने ये देख के मेले में लूटा दी दौलत,
मुर्दा दौलत से तो बच्चों का खिलौना अच्छा.
बहुत खूब, बधाई
भगीरथ

Anil Pusadkar ने कहा…

बहुत बढिया गज़ल है चिराग भाई की।बधाई उनको और आशिष आभार आपका अच्छी गज़ल पढने का मौका देने का॥

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा परिचय रहा भई..आनन्द आ गया.

वीनस केसरी ने कहा…

महोदय ये किस बहर पर लिखी गजल है

अभी मैं सीख रहा हूँ इन बारीकियों को इस लिए समझ न आने पर पूछ लेता हूँ अन्यथा मत लीजियेगा

वीनस केसरी

बेनामी ने कहा…

गजल अच्छी है। कुछ टाइपिंग की अशुद्धियाँ हैं। उन्हें भी ठीक कर लें तो सोने में सुहागा।
इला

NILAMBUJ ने कहा…

kaafi dino baad ek badhia ghazal padhne ko mili. badhai ho dost, chirag! aur anshu ko v jisne itni behtar ghazal padhne ka mauka sabko diya.

Pandit ने कहा…

anshu ji bada achha kiya jo hame ye gazal padhwa di. bahut achha lika hain........good..

आशीष कुमार 'अंशु'

आशीष कुमार 'अंशु'
वंदे मातरम